Wednesday, March 1, 2017

प्रेम

प्रेम का पौधा
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प्रेम का पौधा
बड़ी तेजी से
सूख रहा है,

कुछ फूल आखिरी
सांस ले रहे हैं।

समय पर टकटकी लगाए
खड़े हैं यम।

कुम्हलाए हुए
फूलों का रंग और भी
सूर्ख लग रहा है।

ओह! दुनिया का सबसे
प्यारा शब्द लुप्त हो रहा है।

लोभ,छल,मद बेफिक्री से
घूम रहे हैं।
सौंदर्य और धन के
चारों ओर इकट्ठा लोग
ठठा रहे है और
प्रेम प्यासे लोग
जिंदा लाश से बस
जी रहे हैं।

प्रेम तुम्हारी मृत पड़ी देह को
मैं यूँ मिटने ना दूंगी ।
मैं तुम्हारी आत्मा को रोज
बुलाऊँगी।
अब आत्मा से आत्मा का
एकाकार होगा।
प्रेम ,तुम फिर जन्म लेना
प्रेम बनकर।
- सीमा

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