Wednesday, March 29, 2017

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कुछ निकलना चाह
रह था मेरे भीतर से
शायद वो फूल सा
कोमल होता,
शायद वो एक
सुंदर तस्वीर होती
पर मुझपर
बंदिशें लगती रही!

एक दिन खुद को
टटोलने बैठी तो
ढेर सारे सूखे फूल,
रंगों की टूटी हुई बोतलें
और कुछ भरभराई सी
आवाज़े निकलीं ।

मैंने मन की सतह को
साफ कर दिया
अब वहाँ बस
एक सूनापन है
अब वहाँ कुँवारे सपने नहीं !!
अब वहाँ हकीकत की
बंजर जमीन है!!!
- सीमा
(कुछ पुराने पन्ने)

Monday, March 27, 2017

कृष्ण

हाँ, वो कान्हा है
बिना मोर पंख वाला!
उसके हाथों में सुदर्शन चक्र नहीं,
उसके कानों में कुंडल नहीं
ना ही रंग सांवला है
पर वो कृष्ण का रुप है
और ये मेरे मन का वहम नहीं!
कहते हैं ना
पत्थर को भी पूजो तो वो
देवता बन जाता है
मैं भी मन ही मन पूजती हूँ उसे
पर मैं मीरा नहीं,
राधा नहीं
मैं सीमा हूँ
और वो मेरा असीम!
हाँ,
हम  सभी को एक कृष्ण चाहिए
अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए!
- सीmaa

कृष्ण

हाँ, वो कान्हा है
बिना मोर पंख वाला!
उसके हाथों में सुदर्शन चक्र नहीं,
उसके कानों में कुंडल नहीं
ना ही रंग सांवला है
पर वो कृष्ण का रुप है
और ये मेरे मन का वहम नहीं!
कहते हैं ना
पत्थर को भी पूजो तो वो
देवता बन जाता है
मैं भी मन ही मन पूजती हैं हूँ उसे
पर मैं मीरा नहीं,
राधा नहीं
मैं सीमा हूँ
और वो मेरा असीम!
हाँ,
हम  सभी को एक कृष्ण चाहिए
अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए!
- सीmaa

एक दिन

एक दिन जब मैं
बहुत उदास थी
सूखी पडी धरती पर
कुछ आँसू की बूँदें टपक पडी थी...
वहीं पर एक बीज दबा पड़ा था ..
नमी पाकर बीज ने अंगड़ाई ली।
वहफूट पडा।
वह रोज अपना रुप बदलता रहा
उसने पौधे की शक्ल ले ली।
  एक दिन उस पौधे में
कुछ फूल निकल आए।
पौधा सज गया।
धरती निखर गई।
अब एक साथ सब मुस्कुरा रहे हैं...
.... धरती, पौधा, फूल
और फूलों को देखकर मैं।
आँसू भी व्यर्थ नहीं जाते
कभी-कभी।
- सीmaa

रंगमंच

जिंदगी के रंगमंच पर!
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मैंने हमेशा जीना चाहा
एक अदाकारा की तरह
जो अपने हर संवाद
बखूबी बोलती हो
हर दृश्य को
भली भांति समझती हो।

जीती हो पल-पल को
जो अभिनय नहीं करती
बल्कि समा जाती हो पात्र में
जिसके अंग-अंग से झलकती हो
उसकी भूमिका।

हाँ, जिंदगी एक रंगमंच है
और हम सभी किरदार

पर मैं नहीं बन पाई
एक अच्छी  अदाकारा
मै तो हर वक्त
अटकती रही संवादों में
उलझती रही
बदलते दृश्यों के साथ ।

काश कि मैं हो पाती
एक अच्छी अदाकारा।
खींच लेती
कमजोर कहानियों को भी
अपने दमदार अभिनय से।
भर देती उनमें जीवंतता

और हिट हो जाती
जिंदगी के रंगमंच पे
एक और
जीवंत कहानी।
-सीmaa

Friday, March 24, 2017

उदासी

आज अचानक कहीं से
फिर लौट आई उदासी
सुबह फीकी-फीकी लगी
चिड़ियों की चहचहाहट का
कोई असर नहीं हुआ मन पर
फूल-पौधों को  भी निहारने का मन नहीं हुआ
ये उदासियाँ यूँ ही बेवजह नहीं लौटती होगी ना!
हमारी खुशियों को आराम देने के लिए
लौट - लौट आती हैं ये!
- सीमा

Sunday, March 19, 2017

तुम्हें नहीं पता

तुम्हें नहीं पता
मैं एक बार फिर से
सीख रही हूँ चलना!
हाँ, इस बार
मैं तुम्हारी नजरों से
देख रही हूँ दुनिया!

तुम्हें नहीं पता
मैं तुम में ही
उतर रही हूँ
धीरे-धीरे!

हाँ, मैं तुम में ही
ढ़ल रही हूँ
धीरे-धीरे!

- सीमा

Friday, March 17, 2017

खट्टी - मीठी बातें

कौन रहता है
मेरे साथ हमेशा....
...... तेरी बातें....
हाँ, वही बातें
जो थोड़ी सी खट्टी हैं
और थोड़ी सी  मीठी!
- सीमा

Friday, March 10, 2017

बिगड़ना - संवरना

हम खुद से
कितनी उम्मीदें पाल
बैठते हैं,

कुछ देख सुन के,
कुछ अपने शौक के,
कुछ अपने स्तर के,
कुछ अपनी सहुलियत के।

रोज भगाते हैं
अपने आसपास से
मक्खियों की तरह भिनभिनाती
नकारात्मकता।
रोज छांटते हैं
निराशा के बादल।

खुश होने के बहाने
ढूंढते रहते हैं
इधर-उधर से।

इतिहास,भूगोल,गणित
सबसे लड़ते -भिड़ते
निकालते हैं
अपने लिए
सुकून भरा चाँद
और सो जाते हैं
एक राहत भरी
सुबह की खातिर।

हम रोज उलझे हुए
बालों की कंघी करते हुए
देना चाहते हैं
उन्हें एक नया विन्यास।

हम रोज बिगड़ते हैं,
हम रोज संवरते हैं।
- सीमा

Saturday, March 4, 2017

फकीर

दिल फकीर हुआ जा रहा है
बस तुझे सोच कर ही झूम लेती हूँ!
- सीमा

पन्ना-पन्ना

चलो पन्ना - पन्ना दिल की किताब का हम पढ़ते हैं,
फिर थोड़ा और  उघड़ते हैं, थोड़ा बिखरते हैं!
- सीमा

Wednesday, March 1, 2017

क्रोध

निराशा को जगह
मत दो,
क्रोध उत्पन्न करो।

उन एक-एक
सिसकियों को
याद करो
जो देती रही घुटन,
उस एक-एक
तिनके में
आग लगाओ
जो भेदते रहे तुम्हें।

निराशा को जगह
मत दो,
क्रोध उत्पन्न करो।
    -  सीमा

अनसुनी

तुम हर बार
अनसुनी करते रहे
अपनी छटपटाहट को,
तुम हर बार
पनाह देते रहे दर्द को
बहुत कचरा
जमा हो गया ना!
अब एक ही
रास्ता है
या तो खुद को
दफन कर दो
या बिखरा दो
दर्द का हर हिस्सा
कि
जहाँ से आया था
ये वहीं चला जाए वापस !
- सीमा

प्रेम

प्रेम का पौधा
***********
प्रेम का पौधा
बड़ी तेजी से
सूख रहा है,

कुछ फूल आखिरी
सांस ले रहे हैं।

समय पर टकटकी लगाए
खड़े हैं यम।

कुम्हलाए हुए
फूलों का रंग और भी
सूर्ख लग रहा है।

ओह! दुनिया का सबसे
प्यारा शब्द लुप्त हो रहा है।

लोभ,छल,मद बेफिक्री से
घूम रहे हैं।
सौंदर्य और धन के
चारों ओर इकट्ठा लोग
ठठा रहे है और
प्रेम प्यासे लोग
जिंदा लाश से बस
जी रहे हैं।

प्रेम तुम्हारी मृत पड़ी देह को
मैं यूँ मिटने ना दूंगी ।
मैं तुम्हारी आत्मा को रोज
बुलाऊँगी।
अब आत्मा से आत्मा का
एकाकार होगा।
प्रेम ,तुम फिर जन्म लेना
प्रेम बनकर।
- सीमा