बैठे ,बैठे अचानक याद आ गया वह खेल
जिसमें हम लकीरें खींच आते थे
अलग- अलग जगहों पर
और फिर शुरू होती थी
एक दूसरे की खींची लकीरो को
खोजने की बारी ।
जो जितना कम समय लगाता खोजने में
वो जीत जाता ।
हम सभी जल्दी ,जल्दी काटते थे
एक ,दूसरे की खींची लकीरें !
ये लकीरों को काटना
सचमुच खेल था या
इसमे छिपी थी कोई सच्चाई ।
कहीं ना कहीं हम सभी
एक दूसरे की खींची लकीरो को
काटते नहीं रहते क्या और
कभी-कभी कुछ
खींची हुई लकीरों के पार भी
जाना चाहते हैं कुछ लोग खेलते-खेलते।
- सीमा श्रीवास्तव
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