Tuesday, February 28, 2017

सूरत

चेहरा बदल रहा है
धीरे-धीरे!
अब लोग मुझे परखेंगें
तुम्हारे हिसाब से
सोचती हूँ अब
नकाब में रहूँ
कि कोई बेनकाब ना
कर पाए मुझे!
हाँ,
आजकल तुम्हारी सूरत
नजर आने लगी है मुझमें!
- सीमा

Sunday, February 26, 2017

मुट्ठी भर प्रेम

मौन था तेरा प्रेम
कि उलझनें बहुत थी तेरी राहों में और
कांधे जिम्मेदारियों से भारी थे
अपने सपनों को कच्चा - पक्का पका कर
तुम कभी सुस्त, कभी तेज
चले जा रहे थे और
मुट्ठी भर मेरा प्रेम भी रख लिए थे
अपने साथ!
मैं भी बस इसी बात से खुश हूँ कि
तुम्हारे पास ही हूँ मैं!
- सीmaa

Saturday, February 25, 2017

साक्षात्कार


उन दिनों जब उसमें इतनी शक्ति थी कि
वो विद्रोह करती उसने
सहनशीलता के पाठ को पढना जारी रखा।
सहते - सहते एक दिन उसकी सारी शक्तियाँ खत्म हो गई
अब वह दुनिया में अर्थ ढूंढ रही है अपने जिंदा होने का।
किसी ने उसे कर्मो का लेखा - जोखा  पढ़ाया
उसने संतोष कर लिया।
पर कुछ दिनों से फिर बगावत के कुछ राग
उसके आसपास मंडरा रहे हैं
इस बार वह उसे व्यर्थ नहीं जाने देगी
इस बार सारे सवालों के जवाब वह पाकर रहेगी
ऊपर वाले तुम तैयार हो ना
कि इस बार साक्षात्कार की बारी तुम्हारी है।
- सीमा

Friday, February 24, 2017

जुर्म

जुर्म था तेरा पास आना
अब दूर जाना  दूसरा गुनाह होगा!
- सीमा

पन्ने

कुछ पन्ने फड़फड़ाए थे!
हवाओं ने उन्हें गुदगुदाया था।

किताबों को बंद करके दबा दिया गया!
- सीमा

   

पलाश


पलाश
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राह चलती एक स्त्री
अचानक ही थम जाती है
जब पलाश के पेड़ से उतरकर
एक फूल सीधे उसके जूड़े में
अटक जाता है!

उसका  सादा पड़ा चेहरा
दमकने लगता है!
पलाश का फूल
मुस्कुराता  है कि

जीवन में रंग भरना
आता है उसे!
वो रंग देकर चला जाता है!

जब मौसम करवट लेता है
तो पलाश नजर नहीं आते पर
उनके रंग हमेशा याद आते हैं!
- सीमा श्रीवास्तव

धूल - जाले

घर के धूल - जाले झाड़ते हाथ
सहसा रुक जाते हैं
जब
एक औरत
अचानक देखती है
अपना मुरझाया सा चेहरा!
अपने मन में बैठे जाले को भी वो
साफ - साफ देख पा रही है आईने में!
- सीमा

Thursday, February 23, 2017

केंचुल

अपने जीवन के किसी एक पड़ाव पर
अक्सर औरतें बदलती हैं अपना रुप
अपनी देह पर चिपके केंचुल को
झटक कर वे
आगे बढ़ती हैं और
आईना हैरान रह जाता है
उनकी सूरत देखकर!
- सीmaa

Monday, February 20, 2017

कहते-सुनते

कहते -सुनते
बड़ी हो गई मैं,

सहते-सहते
बड़ी हो गई मैं,

कितना समझा
कितना  जाना

फिर भी  रहा
बहुत कुछ अनजाना।

सब की परिभाषाओं को पढ़ते
आकर कहाँ खड़ी
हो गई मैं।

बहुत कुछ
छोड़ आई मैं पीछे

बहूत कुछ समेट रक्खा है
खुद में।

कितनी बार गिरी हूँ
देखो
फिर भी तन के
खड़ी हो गई मैं।

रोते-रोते बड़ी
हो गई मैं,
हॅसते-हॅसते बड़ी
हो गई मैं।।

- सीमा

Saturday, February 18, 2017

परछाई

अपनी परछाईयों से
भागते हुए
किसी से टकरा जाते हम एक दिन
और फिर उसे थाम कर
बैठ जाते हैं।
फिर आसपास क्या चल रहा है
नहीं दिखता।
अपनी परछाईयाँ भी
तब गायब हो जाती हैं।
हम वही थम जाते हैं
और वक्त रुक जाता है मानो!
- सीमा

Thursday, February 16, 2017

वसंत

बौराती हैं तितलियाँ,
मुस्काते हैं फूल

ठहरता कहाँ है पर
मौसम वसंत!
- सीमा

Tuesday, February 14, 2017

इजहार

कुछ लड़कियाँ अपने प्रेम को
चीनी के डब्बों में छुपा कर रखती हैं
चाय की पत्तियों के साथ उबाल कर कत्थई कर देती हैं,
गमलों की मिट्टी में मिला देती हैं
कि फूलों का रंग चटक हो!

कुछ लड़कियाँ बस इंतजार करती हैं
कि वो इजहार नहीं कर सकतीं!
- सीमा

Sunday, February 12, 2017

इंसान

तपाया है खुद को
इसलिए दमकते हैं!

कुंदन नहीं इंसान ही हैं!
- सीमा

हकीकत

चुन लो कोई ख्वाब
कि जिंदगी एक हकीकत है!
- सीमा

Saturday, February 11, 2017

बिंदु

जब भी ध्यान स्थिर करती हूँ
तुम एक बिन्दु बन कर चले आते हो!
- सीमा

वादा

क्या करूँ कोई वादा खुद से निभा नहीं पाती हूँ
सोचती हूँ कि अब ना सोचूँगी तूझे
पर हर बार तुझे ही सोचती चली जाती हूँ!
-सीमा

Friday, February 10, 2017

स्त्री

एक ही दिन में
नदी, झील, समंदर
कितने रुप
धर लेती हूँ मैं....
.. हाँ स्त्री  हूँ मैं.......!
- सीमा

गुलमोहर

गुलमोहर की लालिमा देती मन भरमाए

छाँव उसकी बैठ कर लेते सब सुस्ताए

है गुलाब सुन्दर बहुत पर
रहते हम इससे दूर

काँटो वाले  तन हैं इसके
देता घाव लगाए!
- सीमा

नदी

पूछना उस नदी से कि ठहरा हुआ
जल कैसा दिखता है!
  फिर भी ना जाने किसके इंतजार में
कभी - कभी रुक जाती हैं नदी!

Thursday, February 9, 2017

उम्मीद

नदी बन जाना चाहते हैं जज्बात
ये बहते हैं तो रूकते ही नहीं!

उम्मीदें हर बार बढ़ती ही चली जाती हैं!
- सीमा श्रीवास्तव

अक्स

हाथ से छूटा आईना और गिर गया देखो
अक्स मेरा जो था कैसे बिखर गया देखो!
   

यादें


यादों की नदी से बाहर तो आ जाती हूँ
पर किनारों पर बहुत फिसलन है
मैं फिसल कर फिर पहुँच जाती हूँ तुम तक!

जादू

सारा जादू तुम्हारी मुट्ठियों में बंद था...
... अब वो हवाओं में बिखर गया है

पर हवाएँ कहाँ रुकती हैं किसी के पास भला!

खत

जब खत लिखती हूँ तेरे नाम से
तुझको पढ़ लेती हूँ फिर से!
- सीमा

कोशिश

         एक कोशिश तुमसे दूर  रहने की
एक कोशिश इस कशिश को बरकरार रखने की!

Wednesday, February 8, 2017

इंतजार

          बड़ी उम्मीदों की रात थी वो
           काली थी काली ही रही

तेरे इंतजार में हुई सुबह भी  अंधियारी ही लगी!

Sunday, February 5, 2017

खत

तुम्हारे खत कभी पुराने नहीं दिखते
उनकी खुशबू भी कागजी नहीं बिल्कुल

कुछ खत इत्र की मानिंद महकते हैं!
- सीमा

चाहत

चाहतों का समंदर
सो गया है कहीं
बस नदी सी
अब बहना
चाहती हूँ।

- सीमा

Saturday, February 4, 2017

अक्स

हाथ से छूटा आईना और गिर गया देखो
अक्स था मेरा जो उसमें कैसे बिखर गया देखो!
   

Thursday, February 2, 2017

लकीरें

बैठे ,बैठे अचानक याद आ गया वह खेल

जिसमें हम लकीरें खींच आते थे
अलग- अलग  जगहों पर

और फिर शुरू होती थी
एक दूसरे की खींची लकीरो को
खोजने की बारी ।
जो जितना कम समय लगाता खोजने में
वो जीत जाता ।

हम सभी जल्दी ,जल्दी   काटते थे
एक ,दूसरे की खींची लकीरें !

ये लकीरों को काटना
सचमुच  खेल था या
इसमे छिपी थी कोई  सच्चाई ।

कहीं ना कहीं हम सभी
एक दूसरे की खींची लकीरो को
काटते नहीं रहते क्या और
कभी-कभी कुछ
खींची हुई लकीरों के पार भी
जाना चाहते हैं कुछ लोग खेलते-खेलते।

- सीमा श्रीवास्तव

Wednesday, February 1, 2017

उसका होना


उसका ना  होना होने सा था
और उसका होना ना होने सा !
कभी -कभी ना होना ज्यादा मायने रखता है
हो जाने से ।
संभावनाओं की
एक पूरी जमीन होती है तब
और ख्यालों का समूचा आसमान
और तब तक हो जाना
ना  होने को
चुनौतियाँ देता है!

- सीमा