कुछ यादों में गोते लगाने पर
हम अपने साथ कितना कुछ
निकाल कर ले आते हैं!
एक याद पकड़ कर
चलते हैं
और भटकते-भटकते
कहाँ से कहाँ
निकल जाते हैं!
ये यादों का सिरा भी ना
लपेटता चला जाता है हमें
और हम ना चाहते हुए भी
इससे
लिपटते चले जाते हैं!
-सीमा
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