Sunday, August 28, 2016

ओ शाम

ओ शाम!
आओ बैठते हैं
तुम्हारे कांधे पर सर रख के
कि दिन की सारी बातें
तुमको सुनानी है
और तुम्हारे आंचल में बंधे
सारे रंगो को समेटना है।
तुम्हारी छवि को निरखना है
तुम्हारी ही गोद में बैठकर।

ओ शाम!
तुम्हारी आहट का पता ही नहीं चलता
और तुम्हारे जाने के बाद
अंधकार मृत्यु सम लगती है।

तुम आने के पहले जिंदगी की सांकल को
हौले से खटखटा देना और
जाने के पहले भींच के गले लगा लेना।
- सीमा

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