Saturday, August 6, 2016

उम्मीद

वह रात की स्याही से
दिन   का गुणगान करती
और दिन की रोशनी चुराकर
रात को चमकाती।

वह हर शब्द से उम्मीद निकालती,
इंतजार में अपनी मेंहदी के रंग और चटक करती
और खुश्बू से अपने स्वप्न महाकाती।

वह अधखिली कलियों को चूमती
और खिलने पर
उन्हें दूर से निहारती।

एक दिन वह अपनी उम्मीद
उदास लडकियों में बाँट आई।
उसने उनकी हाथों में
अपने हाथों से मेंहदी लगाई।

अब खुश्बू फिजाओं में बिखरेगी
और प्रेम के कत्थई रंग चर्चे में होंगे।
वह दूर खड़ी खुशियों का आनंद ले रही है।
सीमा

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