औरत ऊबती हैं सीधी- सपाट जिंदगी से
और गमलों में लगाती हैं कुछ पौधे।
औरत ऊबती है अपनी सूनी हथेलियों से
और रचा लेती है मेंहदी।
औरत ऊबती है अपनी चोटी से और
देती है कुछ नए अंदाज अपने बालों को।
औरतें रंगोलियों से करती हैं अपने मन के रंग रौशन।
और खुद को बहलाने के लिए
रचती है कविताओं में एक नया संसार।
औरत अपनी ऊब से बचने के लिए ढेर सारी
सुंदरता बिखेर लेती हैं।
No comments:
Post a Comment