Wednesday, May 25, 2016

आत्मविश्वास 
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बहुत दिनों तक
थम गई थी मैं,
मन को अपाहिज करके ,
सूनी आँखों से
दुनिया देखती ,
भारी कदमों से
रूकती,बढती।
फिर एक दिन खुद ने
खुद को फटकारा,
कितनी लड़ाइयाँ चली
भीतर -भीतर
बहुत कुछ बिखरा
इधर -उधर
और जो बचा
वो बहुत काम का था।
मेरा आत्मविश्वास
अब मेरे साथ था
अब आँखों में चमक थी
रास्तों का डर नहीं था अब
सच,
विश्वास की लाठी हो तो
सफर में डरना कैसा !!
~ सीमा

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