Wednesday, May 25, 2016

सपनों का राजकुमार
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प्रेम की डगर पर
उसका हाथ थामने
आया था उसके
सपनों का राजकुमार
बिल्कुल सपनों वाला 
वह भी उसके घोड़े पर
खुशी -खुशी चढ़ कर
चली आई उसके महल
पर कर्तव्यों से बंधा राजकुमार
उसे वहीं छोड़ कर
करता रहा अपने कर्तव्यों का निर्वाह
उसके पास वक्त की कमी थी
जिम्मेदारियाँ ज्यादा थीं।
वो अपने शासक पिता का
आज्ञाकारी राजकुमार था,
अपनी रानी माँ का अनुशासित बेटा था,
अपनी प्रजा का दुलारा राजकुमार था
पर वो यह भूल गई थी कि
वो कौन है
उसने जिसका हाथ थामा वो कौन था,
वह यह भूल गई थी कि उसकी
पसंद क्या थी!!
उसके सपनों की मंजिल कहाँ थी!!
वो सब कुछ भूल कर अब कुछ भी नहीं थी।
एक साया सी वो
इधर-उधर भटकती और
उसका प्राण
राजकुमार की मुटठी में था।
उस राजकुमार ने
बहुत नाम कमाया
उसने बहुत प्रशंसा कमाई
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा
वह प्रेम के डगर की
कहानी को भूल चुका था
राजकुमार ने अपना
सुनहरा वक्त भी
सबमें बाँट दिया
और साथ ही बाँट दी
उस प्रेम पिपासी की
सारी खुशियाँ
हर कोई उसकी
महानता की गाथा गाता
और राजकुमार
खुश हो जाता।
{इस दास्तान का मूल संदेश है
कि एक राजा के सफलता के पीछे
उसकी रानी के प्रेम की कुरबानी होती हैं।}
~ सीमा

घरेलू औरत


सुनो दुनिया वालों ,
हमें यूँ ही 
रहने दो,
डरी,सहमी
गृहणि बनकर।
हमें घर से
बाहर मत निकालो!!
हम अपनी गोल घड़ी की तरह
घर की दीवारों से
जकड़ी रहना पसंद करती हैं।
हमें अपरिचित चेहरों के बीच
कुछ अजीब सा लगता है ।
हमें भीड़ में अक्सर खो जाने का
डर लगता है
कि घर में रहती औरतें
बहुत सुरक्षित होती हैं।
हाँ ,उन्हें सुरक्षित रखा जाता है
ताकि घर सुरक्षित रह सके।
उन्हें घर में भी सुरक्षित
रहने के लिए ढेर सारी
हिदायतें दी जाती हैं।
उन्हें दो दिनों की यात्रा पर
कहीं जाना हो तो
घर वाले उदास हो जाते हैं।
वे खुद भी
अपने बच्चों,पति,
पेड़-पौधों,पेटस के
बगैर नहीं रह पातीं।
उन्हें अपना तकिया,
अपना बाथरूम बेहद पसंद होत है।
सच कहूँ तो एक औरत को
घरेलू बना दिया जाता है
पर इसे बांध कर रखना नहीं कहते ।
इसे बंधन का आदी होना कहते हैं!!
~ सीमा

दीया

जलता हुआ दीया
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कितनी बार अपनी लौ को
तेज हवाओं से बचाने के लिए
अपने हाथों से ओट लेती हूँ 
मन की बाती को नेह में
भिगोकर रखती हूँ,
हर पल हौले -हौले
मुस्काती हूँ ताकि
रौशन होता रहे
मेरे उम्मीदों का घर।
हूँ तो मैं एक छोटे से दीए जैसी
पर अपने घर की रोशनी हूँ मैं
खुद को जिन्दा रखती हूँ
ताकि ये घर हरा-भरा रहे!
खुद जलती हूँ
कि कोना,कोना
चमकता रहे!!
~ सीमा
आत्मविश्वास 
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बहुत दिनों तक
थम गई थी मैं,
मन को अपाहिज करके ,
सूनी आँखों से
दुनिया देखती ,
भारी कदमों से
रूकती,बढती।
फिर एक दिन खुद ने
खुद को फटकारा,
कितनी लड़ाइयाँ चली
भीतर -भीतर
बहुत कुछ बिखरा
इधर -उधर
और जो बचा
वो बहुत काम का था।
मेरा आत्मविश्वास
अब मेरे साथ था
अब आँखों में चमक थी
रास्तों का डर नहीं था अब
सच,
विश्वास की लाठी हो तो
सफर में डरना कैसा !!
~ सीमा

Thursday, May 19, 2016

         अनुभव 
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रोज कुछ नए
अनुभव इकट्ठा कर रही हूँ
ओर हर सुबह भूल जा रही हूँ
पिछली कड़वाहटों को।
बातें करने के दरम्यान
कितनी बार अपनी
अज्ञानता छिपाती हूँ
कि दुनिया बहुत बड़ा जंगल है
और मैं अभी तक
अपने बागीचे के
खर -पतवार ही उखाड़ रही थी !!
~ सीमा
          उलाहने 
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कभी -कभी बहुत सारे उलाहने
कानों में खुद ब खुद
सुनाई देने लगते हैं
हम अनजाने में कितनी दफे 
छोटी -छोटी गलतियाँ करते रहते हैं
और एक दिन जब एहसास होता है तो
खुद ही घिर जाते हैं अपराध -बोध से
और तभी कानों के आसपास
मच्छरों की तरह
भुनभुनाने लगते हैं ये उलाहने
यह और कोई नहीं
हमारे अंदर का शिक्षक होता है।
हमारी सारी गलतियों का
हिसाब उसके पास होता है
और हम बदमाश बच्चे की तरह
भागते रहते हैं
~ सीमा
मैं खोजती थी
अपने आसपास
प्यारे -प्यारे एहसासों से
भरे लोग
पर मुझे कड़वाहटों में डूबे लोग मिले 
अब सफर में क्या रख़ू्ँ,क्या छोड़ूँ
रोज जूझती हूँ
क्या दिखाऊँ,क्या छिपाऊँ
रोज सोचती हूँ!!
सच ,अच्छी स्मृतियों का धरोहर
किस्मत वालों के पास होता है!!
- सीमा 

Saturday, May 7, 2016

सोचने के क्रम में
कितना कुछ
सोच जाती हूँ।
कभी -कभी 
ढ़ेर सारी खुशियाँ
बटोर लाती हूँ
और कभी
पहुँच जाती हूँ
दर्द के पोखरों के पास .....
कितने ही लोगों के दर्द
भाँप लेती हूँ,
देख लेती हूँ
उनका छटपटाता ह्रदय
कितनी दफे
डूबती -उतरती
 सबकी खुशियों में
शरीक होती रहती हूँ
 चुपके से !!
- सीमा 

सलाखें


तुम्हें नहीं दिखती होगीं ना
मेरे चारों तरफ खड़ी
सलाखें.....
दिखती तो वे
मुझे भी नहीं 
बस महसूस होती हैं
हम सभी ऐसी ही
तरह-तरह की
सलाखों के भीतर हैं
यहाँ खुशी भी है और
घुटन भी !!
हम अपनी -अपनी
सलाखों को कस के
पकड़ कर रखते हैं
एक सुरक्षा-कवच है ये !
हमारे चारों तरफ
फैले जंगल से ये
बचाती है हमें !!

~ सीमा