Tuesday, March 29, 2016

हकीकत

कुछ पुराने पन्ने
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कुछ निकलना चाह
रह था मेरे भीतर से
शायद वो फूल सा
कोमल होता,
शायद वो एक 
सुंदर तस्वीर होती
पर मुझपर
बंदिशें लगती रही
मैं भी दबाव में
करती रही
सब कुछ
उन्हीं के जैसा....
और दबा रह गया मेरा
मुझमें ही कहीं।
एक दिन खुद को
टटोलने बैठी तो
ढेर सारे सूखे फूल,
रंगों की टूटी हुई बोतलें
और कुछ भरभराई सी
आवाज़े निकलीं ।
मैंने मन की सतह को
साफ कर दिया
अब वहाँ बस
एक सूनापन है
अब वहाँ कुँवारे सपने नहीं !!
अब वहाँ हकीकत की 

बंजर जमीन है!!!
- सीमा

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