Sunday, March 27, 2016

परमात्मा
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तुम तड़पता छोड़ मुझको
मुस्काते हो फूलों में,
स्वप्न को बिखेर मेरे 
गरजते हो वसूलों में ।
छोड़ के यूँ हाथ मेरा
उड़ते -फिरते बन के पवन।
कलकलाते झरनों में तुम हो
इधर बहते मेरे नयन ।
तुम बना के दुनिया सारी
बन बैठे परमात्मा ,
मैं रही यूँ ही कलपती
छलनी हो गई मेरी आत्मा !!
- सीमा

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