Tuesday, March 29, 2016

खत


कुछ खत
इत्मीनान से पढ़े जाते हैं
कि बड़े करीने से
रंग और खुशबू
रक्खा होता है इनमें!
इनकी पाकीज़गी को
महसूसने के लिए
हम खोजते हैं एकांत
कि शोर-गुल में
कुछ शब्द भी
शर्माते हैं!!

  - सीमा
 परिवर्तन 
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परिवर्तन आया है
मेरे अंदर
बहुत सुंदर परिवर्तन ।
कल तक मै
हवाओं का
बाट जोहती रही
जो मुझे छू कर
भर दे ढेर सारी उर्जा।
आज मैं
हवाओं में
मिला देना
चाहती हूँ
ढेर सारा प्रेम,
ढेर सारा आनंद
कि वो फैलाती रहे
प्यार और खुशबू ,
भरती रहे सब में
प्राण वायु ।
चलो हम सब
एक साथ बढ़े
सकारात्मकता की ओर ।
- सीमा

रंग

   
कितने रंग लगे
छूटे,
कितने लोग मिले
झूठे।
रंगे थे मैंने जो
सतरंगी सपने
तेरी बेरूखी से
वो टूटे।
खुशियों की खिड़कियाँ
छोड़ रखी थी खुली 
दु:ख आकर ,चोरी करे
लूटे!!
- सीमा
 साँझ की धूप 
############

  साँझ की धूप सी
ठहर गई हूँ मैं 
आओ सुस्ता लो
तुम भी दो पल 
हमदम
कि जिंदगी की रात
अभी बाकी है
चलो अंधेरे से
लड़ने का दम
भर लें हम ।
- सीमा

वजूद

         वजूद 
***************************
सड़क पर धीमी गति से चल रही
अपनी गाड़ी की खिड़की से
मैं देख रही हूँ
स्त्री के विविध रूप को
कुछ अपनी परिभाषाओं में बंधी,
कुछ परिभाषाओं को लांघती...और
कुछ परिभाषाओं के द्वन्द्व में उलझी
हर स्त्री से मैं
खुद को मिलाती हूँ।
मैं अभी भी अपना
वजूद ढूंढ रही हूँ।
- सीमा

हकीकत

कुछ पुराने पन्ने
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कुछ निकलना चाह
रह था मेरे भीतर से
शायद वो फूल सा
कोमल होता,
शायद वो एक 
सुंदर तस्वीर होती
पर मुझपर
बंदिशें लगती रही
मैं भी दबाव में
करती रही
सब कुछ
उन्हीं के जैसा....
और दबा रह गया मेरा
मुझमें ही कहीं।
एक दिन खुद को
टटोलने बैठी तो
ढेर सारे सूखे फूल,
रंगों की टूटी हुई बोतलें
और कुछ भरभराई सी
आवाज़े निकलीं ।
मैंने मन की सतह को
साफ कर दिया
अब वहाँ बस
एक सूनापन है
अब वहाँ कुँवारे सपने नहीं !!
अब वहाँ हकीकत की 

बंजर जमीन है!!!
- सीमा

Sunday, March 27, 2016

शब्द


किसी ने मुझे कहा.....
कि तुम शब्दों से
आहत हो तो
शब्दों से जुड़ो।
कि शब्दों में जादू है 
शब्दों में प्रेम है,
शब्दों में अपनापन है,
शब्दों में स्नेह है।
मैं अपनी
तबीयत के हिसाब से
करती रही शब्दों के चयन।
ये शब्द घाव हैं
और मरहम भी हैं।
- सीमा

आरजू


कितने मौसमों का
असर लिए मैं
चल रही हूँ|

लम्हों की
बेवफाइयाँ
सह रही हूँ ।

क्यों हर चेहरा
है नकाब के अंदर
हर रास्ते उससे
मैं उलझ रही हूँ ।

बहुत जी लिया
दफन कर के
आरज़ू .

अब आरजुओं
की खातिर मैं
जी रही हूँ|
- सीमा

इच्छाएं

     इच्छाएं 
##########
कई इच्छाएं
दुबक के सोए-सोए
टेढ़ी हो चुकी हैं।
जब भी टटोलती हूँ
मन को 
ये कुनमुनाती हैं।
इन इच्छाओं के बस
नाम भर रह गए हैं।
अब इनमें वो ललक नहीं रही।
इन आलसी सी
इच्छाओं को
रोज धूप,पानी देती हूँ
कि ये फिर से देह झाड़ कर
चल-फिर सकें
कि बिना इनके जिंदगी
जिंदगी सी नहीं लगती।
- सीमा
परमात्मा
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तुम तड़पता छोड़ मुझको
मुस्काते हो फूलों में,
स्वप्न को बिखेर मेरे 
गरजते हो वसूलों में ।
छोड़ के यूँ हाथ मेरा
उड़ते -फिरते बन के पवन।
कलकलाते झरनों में तुम हो
इधर बहते मेरे नयन ।
तुम बना के दुनिया सारी
बन बैठे परमात्मा ,
मैं रही यूँ ही कलपती
छलनी हो गई मेरी आत्मा !!
- सीमा

आस

     आस 
#########

बहुत सी आस 
मैंने बचाकर रखी थी!
एक दिन जरा
समझदार क्या हुई 
सारे आस 
भरभरा कर गिर पड़े!!
- सीमा


Sunday, March 13, 2016

तड़प


कई बार
तुम्हारी तड़प में जी
उठते हैं मेरे शब्द। 
शब्दों की जमीन को
नम कर देते हैं
दिल में उठे जज्बात
कि तुम एहसासों में भी रहो
तो जीने की उम्मीद
बनी रहती है!!
- सीमा

Monday, March 7, 2016

सास

बड़ी खुशी की बात है
कि अब वैसी सासें नहीं दिखती
जो काम से घर लौटे बेटे को 
थमा देती हैं
बहू में दिन भर मीन-मेख निकालती
अपनी नजरों की ढेर सारी शिकायतें,
बहू की कम पडे तो
उनके माँ,बाप ,मुहल्ले-टोले से जुड़े
फजूल के किस्से।
असल में ऐसी सासें बोझमुक्त सासें थी।
घरेलू बहुओं के आ जाने से
इनका काम-धंधा छीन जाता था।
अब ये बैठे -बैठे करें भी तो क्या!!
जमाना बदल गया।
अब ये जॅाब वाली बहुओं को लाने लगी।
गए सारे मसले,
खत्म हो गए सारे मसाले।
अब ना बहुएं घर में रहती हैं
ना शिकायतें जमा होती हैं।
चलो अपना-अपना
काम किया जाए।
जय राम जी की ।
- सीमा

ख्वाहिश

कुछ छोटी -छोटी
ख्वाहिशें थीं।
बड़ी -बड़ी
उम्मीदों तले
कुचली गईं।
नन्हा सा मन
जो मुरझाया
फिर वो
खिल ना पाया।
- सीमा
जिस दिन तुम जागोगे
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जिस दिन तुम जागोगे
हजारों कविताएँ 
कुलबुला कर 
निकल आएंगी।
जिस दिन तुम 
कुछ कहने की
ठान लो
हजारों शब्द
गोली की तरह
निकल आएंगे बाहर
पर तुम अपने भीतर
एक आग दबा कर
रखते हो
और धीरे -धीरे
राख बनकर
वह तुम्हें भी
मिट्टी में
मिला देती है!
- सीमा

सुख का एहसास


मैंने अक्सर देखा है
उसे रोते हुए ,
किताबें पढते-पढते,
फिल्में देखते -देखते,
किसी से फोन पर
बातें करते -करते ,
अल्मारियों से अपने
पुराने और पसंदीदा
लिबास खोलते -समेटते 

हर बार वजह
बहुत अच्छी होती थी।

हाँ, ज्यादा अच्छी बातें
उसके अंतर्मन को
भिंगो देती थी 

कि कभी -कभी
सुख का एहसास भी
आँखो के झरने से
बह निकलता है!
- सीमा

प्रेम

       प्रेम 
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इतना ही प्रेम होता
तो अच्छा होता कि
हमें कुछ
खाने की इच्छा होती
और तुम शाम ढले आकर 
रख देते उसे मेरे हाथों में।
मैं भी खुश,तुम भी खुश ।
पर नहीं ना !
हम ढेर सारे ख्वाब
पाल लेते हैं
और ना मैं
खुश रह पाती हूँ
ना तुम!
है ना !!
- सीमा

Friday, March 4, 2016

उसे नही पता था

उसे नहीं पता था
कि सितारों वाली
चमकीली रात के
कल होकर
आग उगलती हुई 
सुबह होती है।
उसे नहीं पता था
कि एक ही दिन में
नियम,कानून की
एक नई किताब
पढनी होती है।
उसे नहीं पता था
कि दुल्हनें
एक दिन का
दिखावा होती हैं।
अब उसे सब पता है
अब उसे सच पता है।
- सीमा
अनकहे जज़्बात
$$$$$$$
चन्द अनकहे जज्बात
दबे रह गए थे
मन के 
किसी कोने में !
तुम्हारे यादों की धूल
जो बेवक्त आँखों में
आ पडती थी
और अश्कों की
गंदली सी बूँदें
फिसल आती थीं
हर बार
झाड़ दिया करती थी मैं !
बस एक दिन
वो मासूम से
जज्बात जाने कैसे
टकरा गए मुझसे
और
तुम फिर
उतरने लगे
मन के भीतर !
आओ,
तुम अपनी
यादों को लौटा
ले जाओ
तुम तो
माहिर हो ना
गहराई तक उतर
जाने में!!
----सीमा

प्याली गई टूट


कितनी बार
हम खुद को
बचपन की वह
चंदा मामा की
लोरी गा कर 
बहलाते हैं ,
कितनी बार
प्यालियाँ टूटती हैं
और हम कभी
खुद को और
कभी दूसरों को
नई प्यालियों का
वास्ता देकर
फुसलाते हैं।
इस दुनिया में
प्यालियों का
टूटना लगा ही
रहता है।
कभी हम समझ,जाते हैं,
कभी हम जिद पर अड़ जाते है!!
- सीमा
    मौसम 
^^^^^^^^^^^^
मौसमों का
बदल जाना
अच्छा लगता है
जब आने वाले
मौसम से 
कुछ उम्मीदें हो!
क्या कहूँ,
तुम्हारे जाने के बाद
हर मौसम
एक सा ही रहा।
ना किसी से
उम्मीद रही
ना किसी का
इंतजार रहा।
अब कोई भी
मौसम मुझको
मुझसे छीन
नहीं सकता
हाँ,
बहुत कुछ
बदल कर
चले गए हो तुम!
- सीमा

ख्वाहिश

 ख्वाहिशें
**************
कुछ छोटी -छोटी 
ख्वाहिशें थीं।
बड़ी -बड़ी
उम्मीदों तले
कुचली गईं।
नन्हा सा मन
जो मुरझाया
फिर वो
खिल ना पाया।
- सीमा

सुख का एहसास


मैंने अक्सर देखा है
उसे रोते हुए ,
किताबें पढते-पढते,
फिल्में देखते -देखते,
किसी से फोन पर
बातें करते -करते ,
अल्मारियों से अपने
पुराने और पसंदीदा
लिबास खोलते -समेटते
हर बार वजह
बहुत अच्छी होती थी।
हाँ, ज्यादा अच्छी बातें
उसके अंतर्मन को
भिंगो देती थी !
कि कभी -कभी
सुख का ए
हसास भी
आँखो के झरने से
बह निकलता है!
- सीमा

प्रेम का पौधा


प्रेम का पौधा
बड़ी तेजी से
सूख रहा है,
कुछ फूल आखिरी
सांस ले रहे हैं।
समय पर टकटकी लगाए
खड़े हैं यम।
कुम्हलाए हुए
फूलों का रंग और भी
सूर्ख लग रहा है।
ओह! दुनिया का सबसे
प्यारा शब्द लुप्त हो रहा है।
लोभ,छल,मद बेफिक्री से
घूम रहे हैं।
सौंदर्य और धन के
चारों ओर इकट्ठा लोग
ठठा रहे है और
प्रेम प्यासे लोग
जिंदा लाश से बस
जी रहे हैं।
प्रेम तुम्हारी मृत पड़ी देह को
मैं यूँ मिटने ना दूंगी ।
मैं तुम्हारी आत्मा को रोज
बुलाऊँगी।
अब आत्मा से आत्मा का
एकाकार होगा।
प्रेम ,तुम फिर जन्म लेना
प्रेम बनकर।
- सीमा

आग

एक आग जलाए रखो
^^^^^^^^^^^^^^^^
जलाए रखो,
अपने अंदर एक आग
जलाए रखो!
भूख की आग 
फसल उगाती है,

सूरज की आग
फसल पकाती है ।


खुद को जिन्दा
रखने के लिए
तुम्हें भी
जलाए रखनी है एक आग!


- सीमा

पीपल

एक अकेला
पीपल का पेड़ 
नहीं रख सकता
सारी धरती को 
हरा-भरा।
उन छोटे -छोटे
पौधों को भी
पानी दो
वो बड़ी आस से
देख रहे हैं
तुम्हारी तरफ।
- सीमा