Saturday, February 6, 2016

शून्य


मैं शून्य की
ओर बढती जा
रही हूँ !
इस संख्या से 
भरी जिंदगी के भार को
बार-बार कंधों से उतारती
मैं थोड़ा सांस लेती हूँ
और थोड़ी देर शून्य हो
जाती हूँ !
उस शून्य में
हर बार मैं
पा लेती हूँ
जीवन का सार
कि बस
मुझे अब और
कुछ नहीं चाहिए!!
- सीमा

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