Saturday, February 13, 2016

रात का तीसरा पहर


रात के तीसरे पहर
अचानक नींद खुलती है।
मौसम दो रस है
यहाँ ठंड अभी
पैर टिकाए है
और उष्मता
अपना आभास
दे रही है।
मन ना खाली है
ना भरा हुआ,
मिली,जुली बातें,
मिली,जुली यादें।
कुछ मधुर,
कुछ कटु अनुभव
सब यहाँ एक साथ घुस आए हैं।
इस पहर में ना कोई
खिंचाव,ना कोई
सम्मोहन है।
आँखे फिर से
नींद में
डूबना चाहती हैं।
चाहती हैं सुबह के
बाँहों में आँखें खोलना।
इसी आस में
सोया हुआ देह
देखता है एक स्वप्न
अब भोर में भी
उसे जगाने का
साहस नहीं।
- सीमा

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