Wednesday, February 24, 2016

नजर

सबने अपनी -अपनी
नजर उतार कर
उस चौराहे पर फेंकी थी !
मैं उसी चौराहे से
गुजर गई थी शायद!!
- सीमा

वसंत

    वसंत
***********
 वसंत तो तब होता
जब मेरा
बागीचा
वसंती फूलों से
गुलज़ार होता।
वसंत तो तब होता
जब सरसों के खेतों से
आती हवाएँ मुझे छेड़ जाती ।
इस बार वसंत आकर
यूँ ही चला जाएगा
कि पिछले महीने
मैंने गमलों में नहीं लगाए
अपनी पसंद के फूल ।
कि इन दिनों मैं
ईंट -पत्थरों में
उलझ कर रह,
गई थी।
सुनो वसंत,
मैं अगले वर्ष
तुम्हारा स्वागत करूँगी
ढेर सारे फूलों और
खुशबुओं के साथ ।
- सीमा

गुलाब

और सारे गुलाब डंठलों से चुपचाप उतर गए कि उन्हें प्रेम की एक बेहतरीन तस्वीर बनना था । कि उन्हें इंसान के हाथों की गरमी को महसूस करना था।
- सीमा

लोरी


कितनी बार
हम खुद को
बचपन की वह
चंदा मामा की
लोरी गा कर 
बहलाते हैं ,
कितनी बार
प्यालियाँ टूटती हैं
और हम कभी
खुद को और
कभी दूसरों को
नई प्यालियों का
वास्ता देकर
फुसलाते हैं।
इस दुनिया में
प्यालियों का
टूटना लगा ही
रहता है।
कभी हम समझ,जाते हैं,
कभी हम जिद पर अड़ जाते है!!
- सीमा

ढाई ही अक्षर

छिपा है प्यार जिसमें वो
हैं सिर्फ ढाई ही अक्षर,
बसा था दिल में तेरे जो
वो थे ये ढाई ही अक्षर।
बहक के जब जुबां से
शब्द कुछ ज्यादा निकल गए,
तमाशा बन गए देखो
फिर वही ढाई ये अक्षर ।
जमा कर लो
मुहब्बत की
इस मीठी जुबानी को
देगें राहत दर्द में
हमारे ढाई ये अक्षर ।
- सीमा

Tuesday, February 23, 2016

एक बार फिर

एक बार फिर
कुछ संकरे से रास्ते
मेरे पास चल के आए हैं
संभावनाएं खटखटा रही हैं 
दरवाजे
पर इन गलियों से जुड़ी सड़क
मुझे डराती है।
कि वहाँ कोई भी ठोकरें मार के
आराम से
निकल जाता है ।
मैंने अक्सर
चोट खाए लोगों को
इन गलियों में सिसकते देखा है !!
-सीमा

लहर

वो अक्सर
तोड़ देती है
रेत के घर
लहरों को
अपनी धुन में
दिखता ही
कहाँ कुछ!!
- सीमा

Tuesday, February 16, 2016

मैं खिलखिलाई

मैं  खिलखिलाई।

लगा धूप का रंग

खिल उठा हो।

हवाएँ किसी
 फूलो वाली घाटी से
आ रही हो।

पौधे हिल मिल के
कोई गान गा रहे हों।

पंछी गगन के
वितान को मापने
जा रहे हों।

चिड़िया अपने चीडे को
प्रेम गीत सुना रही हो।

मै खिलखिलाई

मेरे चारों ओर
खुशियाँ लहराई।

मैँ  उदास हुई
हर दृश्य का
रंग कम पड़ गया ।

- सीमा 

किस्मत का पन्ना

एक ही मिट्टी तले
नफरत भी औ
मुहब्बत भी है।
कब हाथ में
कौन सी निशानी आ जाए।
किस्मत के पन्ने को
हवा ने उडा दिया
सामने अब कौन सी
कहानी आ जाए।
- सीमाा

Saturday, February 13, 2016

प्रेम या छलावा

तुम एक शब्द चुनो,
प्रेम या छलावा,
इसपर गहराई से सोचो
फिर चाहे तो प्रेम करो
या इस से मुक्त हो जाओ ।

- सीमा

रात का तीसरा पहर


रात के तीसरे पहर
अचानक नींद खुलती है।
मौसम दो रस है
यहाँ ठंड अभी
पैर टिकाए है
और उष्मता
अपना आभास
दे रही है।
मन ना खाली है
ना भरा हुआ,
मिली,जुली बातें,
मिली,जुली यादें।
कुछ मधुर,
कुछ कटु अनुभव
सब यहाँ एक साथ घुस आए हैं।
इस पहर में ना कोई
खिंचाव,ना कोई
सम्मोहन है।
आँखे फिर से
नींद में
डूबना चाहती हैं।
चाहती हैं सुबह के
बाँहों में आँखें खोलना।
इसी आस में
सोया हुआ देह
देखता है एक स्वप्न
अब भोर में भी
उसे जगाने का
साहस नहीं।
- सीमा

Thursday, February 11, 2016

रफ्तार

अंधाधुंध  भागते हुए 
आदमी को  नहीं  नजर आता 
प्रेम, स्नेह  जैसा  शब्द !

वो बेतहाशा 
भागता रहता है !

बिना धुप,पानी 
महसूस किये   !!

वह बना डालता  है 
दूसरो खातिर 
कितने ही   महल औ 
आरामगाह  
पर अपने लिए 
एक घर नहीं 
बना पाता है !!
- सीमा 

चाकलेट डे

चाकलेट डे

जिन्हें हम
भूल नहीं पाते
वो अपने होने का
एहसास बखूबी 
देते रहते हैं
कल चाकलेट डे
ही देखो ना
बीते साल की
वो मधुर एहसास को
घोल गया ।
और साथ ही
छोड़ गया
तुम्हारे पास ना
होने की कड़वाहट ।
- सीमा
(रचनाएँ बहुत कुछ कहती है, कभी अपनी ,कभी आसपास की,,,,,,जरूरी नहीं कि हर अफ़साना अपना हो)

वो दिन

वो दिन कितने
अच्छे होते होगे ना
जब,दो चाहने वाले
चुपके से जान लेते होंगे
एक-दूसरे के मन की बातें ।
तब बिना बोले ही
सब हथेली पर
मिल जाता होगा ।
बस वही दिन
सुहाने होते हैं
ताजे तोड़े गुलाब की तरह
एक खिलता रंग और
मदमस्त करती खुशबू
सा होता है प्रेम ।
दूर होकर भी
बहुत पास होने का एहसास ,
एक दूसरे खातिर
मर - मिटने की चाहत।
फिर एक दिन
अचानक क्या हो जाता है ?
क्या शब्दों के आदान-प्रदान से
प्यार कम हो जाता है ?
क्या प्रेम आँखों -आँखों में ही
ज्यादा महफूज रहता है ?
- सीमा

रिश्ता

दोस्ती का रिश्ता
****************
ओह! कहाँ गए वो 
हंसने,हँसाने के दिन,
कहानियाँ बनाने,
पहेलियाँ बुझाने के दिन,
कॅाल्स पे कॅाल्स,
मैसेजस पे मैसेजस
एक दूसरे के सपनों में
आने-जाने के दिन ।
थोड़ी उम्मीदें बढ़ गईं ज्यादा,
थोड़े भ्रम हो गए पैदा
थोड़ी उलझनें बढ़ी
और रिश्ते से प्यार
उडनछू हो गया ।
- सीमा

खुशी

नहीं जानती
किस जन्म के दु:ख से
मैं आहत हूँ इस जन्म में!
कि जब -जब 
छोटी -छोटी खुशियों को
बटोरना चाहा
किसी ना किसी
बड़े दु:ख का
भयावह चेहरा दिखा !
जब-जब
हल्की -फुल्की
बातों के लिए
किसी से मिली
सबने भारी-भरकम
जामे पहना दिए मुझे!
मैं तलाशती थी
छोटी -छोटी
खुशियाँ ,
पर लोग चाहते थे
बड़ी -बड़ी वजहें
और
मैं हर बार उदास सी
लौट आती थी
अपने गरीब खाने में!!
-सीमा

गोष्ठी


एक गोष्ठी
में बरती जाती है
थोड़ी शालीनता,
थोड़ा धैर्य,
लोगों को सुनने खातिर,
लोगों से कहने खातिर ।
यही लोग
यहाँ से निकलकर
अपने घर पहुंचते हैं
हाँ ,यहाँ इत्मीनान से
बैठ कर
की जा सकती हैं
कई तरह की बातें।
(तब तक लोग मन में दबा के रखते हैं बहुत कुछ)
- सीमा
गुलाब बन के रहो
****************

चलो,तुम्हारी सारी
प्यारी बातों को
समेट के रख
लेती हूँ और
सारी कड़वी बातों 
को छुपा देती हूँ कहीं
कि आओ
तुम यादों में
गुलाब बन के रहो ।
- सीमा

Saturday, February 6, 2016

उदासी


उदासी हर किसी के
पास होती है
अपने -अपने ढंग
से ओढी उदासी,
अपने -अपने 
तानों -बाने से
बुनी उदासी।

कभी लाचारगी,
कहीं बेचारगी ,
अपने -अपने जिम्मेदारियों
के तले दबी उदासी।

कभी पूछ के देखना 
किसी से कि कैसे हो? 
कुछ अचकचा जाएगें,
कुछ हस के छिपा लेंगे,
कुछ नजरें झुका लेंगे
और कुछ हमसे ही
पूछ बैठेगें कि आप कैसे हो? 
हाँ ,हसी,खुशी,
सुख ,दुख के बीच ही तो
होती है ये उदासी!!
तो तुम उदास मत होना
कि कहीं भी ज्यादा देर
नहीं रूकती है
ये उदासी!!
- सीमा

बंद लिफाफा

ठीक उस बंद
लिफाफे
की तरह
होते हैं
कुछ रिश्ते 

जिसके भीतर
कुछ नहीं होता
और अनजाने में ही
हमने

उन्हें बेहद सभाल के
रक्खा होता है!!
- सीमा 
नहीं जानती 
**************

नहीं जानती
किस जन्म के दु:ख से
मैं आहत हूँ इस जन्म में!
कि जब -जब 
छोटी -छोटी खुशियों को
बटोरना चाहा
किसी ना किसी
बड़े दु:ख का
भयावह चेहरा दिखा !
जब-जब
हल्की -फुल्की
बातों के लिए
किसी से मिली
सबने भारी-भरकम
जामे पहना दिए मुझे!
मैं तलाशती थी
छोटी -छोटी
खुशियाँ ,
पर लोग चाहते थे
बड़ी -बड़ी वजहें
और
मैं हर बार उदास सी
लौट आती थी
अपने गरीब खाने में!!
-सीमा

रोज

मैं रोज
खुद के 
गुणों को
बेहतर करने की
कोशिश करती हूँ।

दुनिया रोज फटे में
टाँग अड़ाती है ।
इस दुनिया ने
सदियों से बरकरार
रक्खा है अपने गुणों को ।
- सीमा

उसका दर्द

उसका दर्द
मेरे भीतर उतरता गया
अक्षर -अक्षर
घुटते रहे
शब्द सिसक- सिसक के
सो गए !!
- सीमा

होना ना होना

उसका ना होना
होने सा था
और उसका
होना
ना होने सा !

कभी -कभी
ना होना
ज्यादा मायने
रखता है
हो जाने से ।

संभावनाओं की
एक पूरी जमीन होती है तब
और ख्यालों का समूचा आसमान

और तब तक हो जाना
ना होने को
चुनौतियाँ देता है!
-सीमा 

शून्य


मैं शून्य की
ओर बढती जा
रही हूँ !
इस संख्या से 
भरी जिंदगी के भार को
बार-बार कंधों से उतारती
मैं थोड़ा सांस लेती हूँ
और थोड़ी देर शून्य हो
जाती हूँ !
उस शून्य में
हर बार मैं
पा लेती हूँ
जीवन का सार
कि बस
मुझे अब और
कुछ नहीं चाहिए!!
- सीमा

गोष्ठी


एक गोष्ठी
में बरती जाती है
थोड़ी शालीनता,
थोड़ा धैर्य,
लोगों को सुनने खातिर,
लोगों से कहने खातिर ।
यही लोग
यहाँ से निकलकर
अपने घर पहुंचते हैं
हाँ ,यहाँ इत्मीनान से
बैठ कर
की जा सकती हैं
कई तरह की बातें।
(तब तक लोग मन में दबा के रखते हैं बहुत कुछ)
- सीमा