फूल कहीं भी
खिल जाते हैं
बिना भेदभाव के ,
खिल जाते हैं
बिना भेदभाव के ,
झरने हर जगह
बहते हैं झर झर के ,
बहते हैं झर झर के ,
पर मानव काटते-छॅाटते
रह जाते हैं उम्र भर
रह जाते हैं उम्र भर
खुद को,
बॅाटते रह जाते हैं
देश,सीमाओं और
रीति,रिवाजों में
खुद को !!
देश,सीमाओं और
रीति,रिवाजों में
खुद को !!
- सीमा
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