Monday, March 9, 2015

क्षितिज


देखो क्षितिज 

धरती ,गगन का सुन्दर मिलन !

अहा! कितना सुहाना लगता है ना यह दृश्य,

पर नहीं ,ये तो एक छलावा है ,भरम  है 
आँखों का धोखा है बस !

जब टूटता है यह भरम 
हो जाता है सब साफ़ ,साफ़ 

कहो ना,  तुम कब झुके हो मुझ तक और

मै कब पहुंच पाई हूँ तुम तक.....

सीमा श्रीवास्तव 

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