Saturday, March 28, 2015

घरनी

        घरनी (बिनं घरनी घर भूत का डेरा )


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घर की खुशबू है घरनी ,

दीवारो की रंगत है घरनी । 

 चारों कोने में चहलकदमी कर के 

छोड़ती है अपनी पहचान घरनी । 

सूरज की किरणों का पहन कर जामा 

चल पड़ती है सफर पर  अपने ,

चाँद के रंगत को बटोरकर 

 थक हार सो जाती  घरनी । 

सुबह की साज -सज्जा से  ,

 साँझ के दिए - बाती तक 

देह अपना अर्पित कर के 

घर को घर बनाती घरनी । 

अपने एड़ियों और टखनों पे 

देखो लट्टू सी नाच जाती  घरनी । 

- सीमा श्रीवास्तव 

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