मैं झरना ,
मेरा सौन्दर्य है झरना
और बहना ,
तुम पर्वत ,
तुम्हारा सौंदर्य है
तुम्हारी ऊँचाई ,
हरदम उठना
और तन के रहना !
हम दोनों ही हैं प्रकृति के अंग ,
हम दोनों के हैं अपने ,अपने रंग !
सुनो पर्वत ,
जब भी तुम्हारा कोई भाग,
टूटता है ,गिरता है वो मेरी ही गोद में !
मै बहती चली जाती हूँ ,
साथ लेकर उसे
कि हर टूटी हुई चीज
मिल जाती है मुझमें आकर !!
- सीमा श्रीवास्तव
सुनो पर्वत ,
ReplyDeleteजब भी तुम्हारा कोई भाग,
टूटता है ,गिरता है वो मेरी ही गोद में !
मै बहती चली जाती हूँ ,
साथ लेकर उसे
कि हर टूटी हुई चीज
जुड़ जाती है मुझसे आकर !!
बहुत खूबसूरत शब्दों से सजी सुन्दर रचना सीमा जी !!
Dhanywaad...Yogi ji
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