Monday, March 2, 2015

झरना और पर्वत



मैं झरना ,

मेरा सौन्दर्य है झरना
और बहना ,

तुम पर्वत ,
तुम्हारा सौंदर्य है
तुम्हारी ऊँचाई ,

हरदम उठना
और तन के रहना !

हम दोनों ही हैं प्रकृति के  अंग ,

 हम दोनों के हैं अपने ,अपने रंग !

सुनो पर्वत ,
 जब भी तुम्हारा कोई भाग,

टूटता है ,गिरता है वो मेरी ही गोद  में !

मै बहती चली जाती हूँ ,

साथ लेकर उसे

कि हर टूटी हुई चीज

मिल जाती है मुझमें आकर !!

- सीमा श्रीवास्तव


2 comments:

  1. सुनो पर्वत ,
    जब भी तुम्हारा कोई भाग,

    टूटता है ,गिरता है वो मेरी ही गोद में !

    मै बहती चली जाती हूँ ,

    साथ लेकर उसे

    कि हर टूटी हुई चीज

    जुड़ जाती है मुझसे आकर !!
    बहुत खूबसूरत शब्दों से सजी सुन्दर रचना सीमा जी !!

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