Saturday, March 21, 2015

वाह री कविता

  वाह री कविता

ओ री कविता ,

तूने हर बार थामा है मुझे !

 मेरे भावों को 
बिठाया है अपने पास ,

 बताया है मुझे अपने मर्म ,भेद 

 गुदगुदाया है मुझे हौले से आकर ,

  बहलाया  है गले लगाकर। 

दूसरो के  दुःख ,दर्द  सुनाकर
तूने हर बार साँझा किया है  
सबके सुख - दुःख ,किस्से ,कहानियाँ। 

अपने छोटे ,छोटे कदमो से तू 

नापती रहती है कितनी 
पगडंडियाँ ,कितने वीराने ,
कितने नजराने ,कितने अफ़साने 
वाह री कविता ,वाह री कविता !

 -  सीमा श्रीवास्तव 

(विश्व कविता दिवस के अवसर पर )


No comments:

Post a Comment