प्यार से भी जरुरी कई काम हैं
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क्षणिक था वह रोमांच मन का ,
कि पैरो के नीचे का ठोस धरातल
दिला रहा था एहसास बार ,बार
वक़्त ढूंढ रहा था मुझे ,
दिला रहा था एहसास बार ,बार
वक़्त ढूंढ रहा था मुझे ,
तब मै कैसे इठलाती ,सजती ,सवरती
जा बैठती नदी किनारे
देखती तुम्हारी परछाइयों ,
देखती तुम्हारी परछाइयों ,
बनाती कंकड़ो को फ़ेंक ,फ़ेंक के छल्ले,
पैरों से नदी को छेड़ती ,चिढ़ाती !
हाँ, प्रेम भी मांगता है ढेर सारा वक़्त
तभी तो कितने किस्से ,कहानियो
रह जाते हैं अधूरे,
रह जाते हैं अधूरे,
एक तस्वीर बनते ,बनते
रह जाती है अधूरी !!
रह जाती है अधूरी !!
- सीमा श्रीवास्तव
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