Tuesday, March 31, 2015

उदासी



उदासी हमें सिकोड़ देती है,
 अंदर ही अंदर  तोड़ देती है। 
मन के गहराइयो में बैठकर ये 
सुख - चैन को  निचोड़ देती है। 

परिस्थितियों का बिगड़ा 
चेहरा है ये ,
परिणाम है समय की 
प्रतिकूलता का। 

कभी आह ,कभी ईर्ष्या 
का रूप धर कर  
जीवन के रुख को  ये 
मोड़ देती है। 

दिखे कोई उदास चेहरा जब 
प्यार से गले लगा लेना उसको 
हर दुखी दिल ढूँढता है  
स्नेह थोड़ा ,
 एक काँधे की उसको  
जरुरत होती है। 

-  सीमा श्रीवास्तव 

Monday, March 30, 2015

मेहमान



बहुत बार हम कुछ
ज्यादा साज- सज्जा
कर लेते है ,
थालियों को पकवानो से
भर देते है और
मेहमान आते है प्यार के भूखे !
वो सिर्फ स्नेह और प्रेम
खोजते हैं !!

कई बार घर के डब्बे
रहते है खाली ,
घर होता है
अस्त - व्यस्त ।
मेहमान आते हैं
नाक , भौं सिकोड़ते हैं ,
हम पर हँसते हैं और
अपनी शान बघार कर
चल देते हैं ।
-  सीमा श्रीवास्तव 

Saturday, March 28, 2015

प्रवाह

चरैवेति - चरैवेति
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प्रवाह  जरुरी है ,

कही भी ,कभी भी ,

किसी भी रूप में। 

की थम जाना
 सड जाने सम है। 

अभिव्यक्त करो 

अंतर्मन को ,

जी लो हर पल को। 

ज्यादा उलझो नहीं ,

खीचते रहो मन के धागे। 

 जैसे हो ,जो हो ,
तुम उसकी रचना हो। 

तो रचयिता के गुण को अपनाओ। 
रचते रहो ,रचते रहो। 
  
सृजन करते रहो, 
सृजन करते रहो !!

- सीमा श्रीवास्तव 


प्यार से जरुरी कई काम हैं

प्यार से भी जरुरी कई काम हैं
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क्षणिक था वह रोमांच मन का ,
कि पैरो के नीचे का ठोस धरातल
दिला रहा था एहसास बार ,बार
वक़्त ढूंढ रहा था मुझे ,
तब मै कैसे इठलाती ,सजती ,सवरती
जा बैठती नदी किनारे
देखती तुम्हारी परछाइयों ,
बनाती कंकड़ो को फ़ेंक ,फ़ेंक के छल्ले,
पैरों से नदी को छेड़ती ,चिढ़ाती !
हाँ, प्रेम भी मांगता है ढेर सारा वक़्त
तभी तो कितने किस्से ,कहानियो
रह जाते हैं अधूरे,
एक तस्वीर बनते ,बनते
रह जाती है अधूरी !!

- सीमा श्रीवास्तव 






घरनी

        घरनी (बिनं घरनी घर भूत का डेरा )


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घर की खुशबू है घरनी ,

दीवारो की रंगत है घरनी । 

 चारों कोने में चहलकदमी कर के 

छोड़ती है अपनी पहचान घरनी । 

सूरज की किरणों का पहन कर जामा 

चल पड़ती है सफर पर  अपने ,

चाँद के रंगत को बटोरकर 

 थक हार सो जाती  घरनी । 

सुबह की साज -सज्जा से  ,

 साँझ के दिए - बाती तक 

देह अपना अर्पित कर के 

घर को घर बनाती घरनी । 

अपने एड़ियों और टखनों पे 

देखो लट्टू सी नाच जाती  घरनी । 

- सीमा श्रीवास्तव 

Friday, March 27, 2015

बेटियाँ


बेटियाँ बड़ी हो जाती थी ,

ढकते ,ढांकते ,छुपते ,छुपाते | 

कुम्हलाई सी ही विदा कर दी जाती थी  | 

करती  रहती थी लुके ,छिपे ही कितने सृजन ,
कितनी रचनाये लिखती रहती थी माटी पर 
पैरो की नखों से ,

वो उस चाँद सी रहती थी जो
 बादलो के पीछे से 
 हरदम झाँका करता है !

वो बाहर की दुनिया से बेखबर
  बुनती रहती थी 
सलाइयों पर अपने मन के रंगो के ताने बाने। 

उनके सपनो की उड़ान भी उनके छतो जितनी ही ऊँची थी ।  

समय बदलता गया ,

लड़कियौ ने देहरी फांद कर आसमान छू लिया। 

अब वो सपने नहीं संजोती 

सपनो को सच करने की जिद रखती हैं 

रोज उड़ती हैं अपने सपनों के साथ 

दुनिया भर की  गली ,कूचियो  में !!

- सीमा 




Thursday, March 26, 2015

प्रकृति


        प्रकृति
**************


कितनी यात्राएँ करते हैं हम ,

प्रकृति के आँगन मे विचरते हुए.

प्रकृति के सुन्दर दृश्यों के साथ

लेते हैं अपनी तस्वीरें !!

हर तस्वीर मे प्रकृति जीत जाती है। 

हाँ ,हवा ,धूल ,धूप और उतार ,चढ़ाव से 

थक जाते है हम 
  निस्तेज पड़ जाता है
 हमारा   चेहरा और 

सारे दिन के थपेड़ो के बीच भी प्रकृति

खिलखिलाती है ,चमकती है। 

यही तो फर्क है हम मे  और प्रकृति मे !

तभी तो प्रकृति हर बार हमें खीचती है 

हर बार हमें  चमकने को कहती है !!

सीमा श्रीवास्तव 
















Tuesday, March 24, 2015

घड़ी


दिन भर में कितनी ही दफे

देखती हूँ घडी ,

समय की रफ़्तार से 

मिलाना चाहती हूँ कदम। 

अचानक घडी की तीनों सुइयों में 

मुझे  दिखती है अपनी झलक। 

मै भी तो सेकंड ,मिनट
 घंटे की सूई  सी 

कभी चलती हूँ ,

कभी दौड़ती हूँ 
 पर रुकती कहॉ हूँ 

चलती रहती हूँ अनवरत। 

जागते समय शरीर ,

सोते समय दिमाग 

चलता ही रहता है। 

तभी तो सपनो के रास्ते 

घूम आती हूँ कहॉ ,कहॉ से !!

- सीमा श्रीवास्तव 

दोस्त

दोस्त आगे निकल गए 

हमें छोड़ के पीछे ,


कि कतरनों के ढेर में 

दबे हम रह गए  !!

- सीमा 

Monday, March 23, 2015

सूरज

जरुरी नहीं की हर रात  अँधेरी  हो 

कि अक्सर दिमाग का सूरज 

चमकता है रात में ही !!

-  सीमा 

नादानी

  नादानी
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रोज कुछ न  कुछ

नादानी हो जाती है ,

 जब भी अपनी

तबीयत जरा सी

बचकानी हो जाती है !

वक़्त के हिसाब से

 आदतें बदल लीजिये ,

कुछ बातें समय के लिहाज  से

बेमानी हो जाती  है !!

सीमा श्रीवास्तव


Sunday, March 22, 2015

पेड़

छोटी ,छोटी 

बातों  के  ख्याल से ,

बड़ी ,बड़ी दुर्घटनाओ  को 

टाल  सकते  हैं ,

बड़े ,बड़े पेड़ो के छाँव 

नन्हे ,नन्हे पौधों को 

 मार सकते हैं !!

- सीमा 






परिवार



कभी स्त्री ,
कभी पुरुष,
बदलते रहते हैं
अपने गुण ,धर्म,
और
परिवार 
फलते फूलते
रहतें है
आगे बढ़ते....
रहतें है
- सीमा

Saturday, March 21, 2015

वाह री कविता

  वाह री कविता

ओ री कविता ,

तूने हर बार थामा है मुझे !

 मेरे भावों को 
बिठाया है अपने पास ,

 बताया है मुझे अपने मर्म ,भेद 

 गुदगुदाया है मुझे हौले से आकर ,

  बहलाया  है गले लगाकर। 

दूसरो के  दुःख ,दर्द  सुनाकर
तूने हर बार साँझा किया है  
सबके सुख - दुःख ,किस्से ,कहानियाँ। 

अपने छोटे ,छोटे कदमो से तू 

नापती रहती है कितनी 
पगडंडियाँ ,कितने वीराने ,
कितने नजराने ,कितने अफ़साने 
वाह री कविता ,वाह री कविता !

 -  सीमा श्रीवास्तव 

(विश्व कविता दिवस के अवसर पर )


Friday, March 20, 2015

सफर


मेरा  हर सफर 
होता  है सुकून की   खातिर 

जिंदगी,  ज्यादा भटकना 

नहीं चाहा मैंने ,

खोजते हैं सब जिसे 

मंदिरो औ मस्जिदो में जाकर 

हरदम उसे
 खुद में तलाशा 

 है  मैंने !!

- सीमा 

Thursday, March 19, 2015

अतिथि

ख़ुशी और गम किसी वक़्त भी
 बजा सकते हैं किवाड़

तो मन को समझा लें 

दोनों में भेद - भाव ना करे

 दोनों ही को अतिथि समझ

जरा प्यार से संभाल लें !!

- सीमा 

कभी-कभी

कभी ,कभी   थम जाती हूँ ,
दूर खड़े होकर देखती हूँ 

दूसरो का बोलना ,बतियाना ,

हँसना ,खिलखिलाना। .

बिना किसी से कोई  संवाद के
फिर  खुद में हो जाती   हूँ गुम
हाँ  !  हर बार जरूरी तो  नहीं

शब्दों के जोड़-तोड़ !
कि कई बार चुप्पी भी

 हमें लगती है  प्यारी !!

-  सीमा


भाव

आज शब्दो ने साथ ना देने की 

खा रखी है कसम 

कि कितने भाव आए 

और यूँ ही चले गए !!

- सीमा 

Sunday, March 15, 2015

तिलस्म



वो रोज बिखेरती है 
एक तिलस्म ,
कि कितने तिलस्मों ने 
बिखेर रखा है 
उसे !!

- सीमा 

Monday, March 9, 2015

मौन

जब मौन भरता है
 कुलांचे,
शब्द करने लगते हैं...
अठ्खेलियॉ....

सीमा..

क्षितिज


देखो क्षितिज 

धरती ,गगन का सुन्दर मिलन !

अहा! कितना सुहाना लगता है ना यह दृश्य,

पर नहीं ,ये तो एक छलावा है ,भरम  है 
आँखों का धोखा है बस !

जब टूटता है यह भरम 
हो जाता है सब साफ़ ,साफ़ 

कहो ना,  तुम कब झुके हो मुझ तक और

मै कब पहुंच पाई हूँ तुम तक.....

सीमा श्रीवास्तव 

भूमिका



किरदार अपना ,अपना 

हम निभाते हैं !

 पन्ने इतिहास के

बार,बार पलट जाते हैं !

एक दृश्य घटता है 

कई बार यहॉ !

लौट के हम वापस 

यही पर आते हैं !

मंच है ये दुनिया 

हम किरदार यहॉ ,

अपनी ,अपनी भूमिका 

सब निभाते हैं !!

सीमा श्रीवास्तव 

Thursday, March 5, 2015

इन्द्रधनुष

सात रंग हैं ,

इन्द्रधनुष के ,

मन के 

 रंग हजार !

सीमा 

प्रीत की चुनर



जब,जब ओढ़ू  ,
प्रीत की चूनर 
मन ये झूमें 
जैसे झूमर। 

इतराऊँ पढ़ 
प्रेम की पाती ,

मन ही मन 
रहूँ मुस्काती !
 दिल मे धक -धक ,
मन में हलचल 
याद मुझे तुम आते  
हर  पल !!

सीमा 



Wednesday, March 4, 2015

आह


मेरा दुःख था 
किश्तों में ,

उसकी पीड़ा थी 

एक आह !

मेरा दुःख था 
  छोटे ,छोटे पत्थरो सा !

उसका दुःख था 
 एक विशाल पर्वत,

बहुत पछताई मैं 
उससे यह पूछ के 
कि तुम क्यों  मुस्कुरा रही  हो इतना ?

और उसने भी  सारे राज खोल दिए 

पर क्या मैं सहज हो पाई अब तक !

उधर वो भी  होगी बैचैन  !
 हॉ ,बरसों से दबे गम को  न ही 
उघेड़े तो अच्छा हो  !!

- सीमा 


Monday, March 2, 2015

झरना और पर्वत



मैं झरना ,

मेरा सौन्दर्य है झरना
और बहना ,

तुम पर्वत ,
तुम्हारा सौंदर्य है
तुम्हारी ऊँचाई ,

हरदम उठना
और तन के रहना !

हम दोनों ही हैं प्रकृति के  अंग ,

 हम दोनों के हैं अपने ,अपने रंग !

सुनो पर्वत ,
 जब भी तुम्हारा कोई भाग,

टूटता है ,गिरता है वो मेरी ही गोद  में !

मै बहती चली जाती हूँ ,

साथ लेकर उसे

कि हर टूटी हुई चीज

मिल जाती है मुझमें आकर !!

- सीमा श्रीवास्तव


स्पंदन


 

सुनो कान्हा ,
तुम मेँ जो जादू है
वो कर ही देता  है
सबको दीवाना
हम खो देते हैं
सुध ,बुध
देखो ना ,सबके दिल
धड़क रहे हैं एक साथ ,
कि ये स्पंदन है
तुम्हारे ही प्रेम का ,
हम सब मे तुम
धड़क रहे हो एक साथ

और
मौसम भी है रंगो का  !!

-- सीमा श्रीवास्तव 




Sunday, March 1, 2015

झूला

कि भगवान भी
पूर्ण नहीं थे अकेले,
तभी तो रचाया



उन्होने ये संसार,
सजाए मेले,

तरह तरह के

बनाए झूले
कि झूलते रहो

इन झूलों में

 आ ही गए हो
जो यहॉ  तो..



सीमा श्रीवास्तव

मैं लिखती नहीं



मै लिखती नहीं ,
मैं शब्दों के साथ
करती हूं मस्ती.,
थोडी भागदौड 
और पकड के रख देती हूं
पन्नों पर
कि ऐसा ना करूं तो ये
अंदर ही अंदर करते रहते हैं
शरारत,
मचाते रहते हैं
धमा चौकडी !!
आपस में ही उलझ जाते हैं,
कुछ ना कुछ खुराफात
कर जाते हैं..!!

- सीमा श्रीवास्तव

बेमौसम



बेमौसम बरसात सा प्यार 
तुम्हारा ,
अपने मन की हरदम  कर जाता है 
जेठ में ये दिखाता है नखरे ,
और बेवक़्त बरस जाता है 
कि जब जरुरत पडी
नहीं मिला साया ,
धूप ही धूप रास्ते मेँ मिला 
एक दरख़्त ढूंढती मै रही 
दूर तलक ना कहीं छाँव दिखा !!

सीमा श्रीवास्तव