पैरो की ख्वाहिश थी तो
पहन ली मैंने पायल,
छन ,छन इनकी सुन कर तुम
मत हो जाना घायल !!
जब से जुडी है डोर प्रीत की
मन फागुन सा बौराता है
तेरी अंखियो में जो प्यार छुपा
वो मुझको पागल कर जाता है!!
तेरे मन के मधुर तान की
मैं बन जाऊ जोगन
देखो ,पायल मिलने को तुझस्रे
करती है कैसे छन छन...
सीमा श्रीवास्तव
(शब्द अंतराक्षरी से अनायास बन गई एक रचना )
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