Friday, January 23, 2015

आँधियाँ


,.. हम बार बार बिखरते हैं,
फिर बार बार समेटते हैं
खुद को..
जिंदगी का सफर यूं ही
चलता रहता है...
आंधियो का सफर में
लगा रहता है आना जाना
वक़्त बेवक़्त गर्द
बिखर ही जाता है...

- सीमा श्रीवास्तव

2 comments:

  1. "वक़्त-बेवक्त गर्द बिखर ही जाता है"..... और फिर कोई नया सपना संवर जाता है. आपकी कविताओं की प्रबलता सचमुच असाधारण है.

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