Monday, January 26, 2015

भीड़

        भीड़ 
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कभी कभी लिखा-  पढ़ा हुआ 

सब भूलने लगते हैं हम 

 जमा होने लगती है

दिमाग की तहों मे 

उल जलूल बातें! 

परोसता रहता है ये समाज 

बेसिर - पैर के किस्से......

खुद  रहता  है दिशाहीन 

तो भटका देता है हमें भी। 

  कहता है कि तुम 

कैसे हो सकते हो 

भीड़ से अलग !!

तो खुद पे भरोसा रखना कि 

उसी समाज से निकल कर आते हैं 

देश के कर्णधार! 

तुम भीड में घुस कर 

मत करना   गुमराह किसी को! 

तुम हाथ खींच कर ऊपर लाना 

हर उस शख्स को जो 

भीड़ में दब के 

खो चुके   हैं 

 अपनी पहचान !!

सीमा श्रीवास्तव 

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