Saturday, January 31, 2015

दोस्त

  दोस्त
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तेरी हँसी  से

खुशियो की धूप

खिल गयी देखो

यूं तो  नमी सी है

अंदर भी और
बाहर भी !!
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मौसम हो कोई पर

मन चहक उठता है तब

मिले  तुम सा कोई

दोस्त जब  प्यारा प्यारा !!

करू मै रब से दुआ

हर एक को एक साथी मिले

वक़्त बदले पर बदले ना

किसी का
  प्यार यारा !!
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दोस्त कहते हैं जिसे

बड़ा ही कीमती तोहफा है

बड़ी मुश्किल से जुड़ता है

किसी से मन हमारा !!


सीमा श्रीवास्तव 






खुशियाँ

   खुशियाँ 
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खुशियाँ तो 
होती हैं
गुब्बारों सी,
जरा सी   नोक
लगी नही कि
फुस्स से हवा बाहर,
रह जाता है
एक सुराख लिए
वो प्यारा सा गुब्बारा !!
बिल्कुल हमारे नन्हें से
मन जैसा....!!

सीमा श्रीवास्तव



Thursday, January 29, 2015

बलवान



तुम दर्द देते गए ,

हम  सहते गए । 

हॉ.,   हम वही तो दे पाते हैं 

जो हमारे किसी काम की नहीं । 

चलो बहुत लोग ऐसे हैं 

जो दूसरों के दिए पर  ही जिन्दा हैं । 

 देखना यही  लेकर वो

हो जाएँगे  
तुमसे भी   ज्यादा  

 बलवान !!

सीमा श्रीवास्तव 


Monday, January 26, 2015

भीड़

        भीड़ 
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कभी कभी लिखा-  पढ़ा हुआ 

सब भूलने लगते हैं हम 

 जमा होने लगती है

दिमाग की तहों मे 

उल जलूल बातें! 

परोसता रहता है ये समाज 

बेसिर - पैर के किस्से......

खुद  रहता  है दिशाहीन 

तो भटका देता है हमें भी। 

  कहता है कि तुम 

कैसे हो सकते हो 

भीड़ से अलग !!

तो खुद पे भरोसा रखना कि 

उसी समाज से निकल कर आते हैं 

देश के कर्णधार! 

तुम भीड में घुस कर 

मत करना   गुमराह किसी को! 

तुम हाथ खींच कर ऊपर लाना 

हर उस शख्स को जो 

भीड़ में दब के 

खो चुके   हैं 

 अपनी पहचान !!

सीमा श्रीवास्तव 

Friday, January 23, 2015

आँधियाँ


,.. हम बार बार बिखरते हैं,
फिर बार बार समेटते हैं
खुद को..
जिंदगी का सफर यूं ही
चलता रहता है...
आंधियो का सफर में
लगा रहता है आना जाना
वक़्त बेवक़्त गर्द
बिखर ही जाता है...

- सीमा श्रीवास्तव

भीड़

      भीड 
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तन्हाईयों में तुम

याद आते हो...

तभी तो मैं...

भीड में खो

जाती हूं....

सीमा श्रीवास्तव
        परछाई 
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  परछाइयाँ  तो रोशनी की साथी हैं। 

अँधेरो में कहाँ ये नजर आती हैं। 

बिखरी जब  जब रोशनी देखो ,

 तब तब परछाइयाँ  चली आती हैं !!

सीमा श्रीवास्तव 

Thursday, January 22, 2015

पत्थर दिल


 

बहता हुआ पानी ,

किनारों पर बिछे 

बेतरतीब पत्थर। 

उन पत्थरो पर 

दौड़ते भागते 

जा बैठते है हम ,

एक सुन्दर दृश्य के साथ 

लेने  को  तस्वीर। 

पत्थरों पे बैठा इंसान 

बिलकुल अलग दिखता है 

पत्थरों से ,

हॉ.., इंसान हाड मांस का पुतला है 


पत्थर नही !!

पर ये तो सतही  फर्क है  ना  !!

भीतर झाँक कर देखना जरा 

कितनों के ही  दिल 

पत्थर के बने दिख जायेँगे !!

सीमा श्रीवास्तव 



Sunday, January 18, 2015

कुछ आस बीन लाना

कुछ फूल चुन लाना 

कुछ आस बीन लाना ,

हाँ, समय के रहते एक 

नींव डाल जाना !!


ना जाने कब वो 

 बरसा दे मेहर  अपना, 

इस भ्रम में मत तुम 

हाथो पे हाथ रखना !!


समय के पाँव से तुम 

कुछ सबक सीख लेना 

ना तुम कभी भटकना ,

ना तुम कहीं अटकना !!


जीवन के रस्तो पे 

बन मस्त चलते रहना !

हर सांस सांस जीना ,

हर आस आस जीना !!


- सीमा श्रीवास्तव 


Saturday, January 17, 2015

जिंदगी

जिंदगी
बच बच के
निकल रही थी
 मुझसे
हमने कस के
पकड़ लिया 
इसको  !!

सीमा श्रीवास्तव..smile emoticon

शहर

अपने शहर को 

पहचान तो चुकी हूँ मैं

फिर भी औरों की नजरों से 

इसे रोज  ही देखा करती हूँ !!


- सीमा  श्रीवास्तव...

Friday, January 16, 2015

चित्तचोर

   
चितचोर (भोर)
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नींद मेरी आँखों से ,
अब भी कोसों दूर थी 

उधर आकाश पर 

एक नई कहानी 

लिख रही चितचोर थी 

पर रात भर की 
जागी आँखे जाने 
 कब लग गई !

ओह !भोर मुझसे
 बिन मिले ही
देखो कहाँ निकल  गई !!

सीमा श्रीवास्तव 

Friday, January 9, 2015

भूत



खोज रही थी 
आधी रात  को 

खिड़की से झाँक  के , कोई भूत !!

कि कहीं कोई एक  हमदर्द भूत ही मिल जाता ,

इंसान तो हमदर्द हो पाता नहीं ,

खुदा भी कहीं नजर आता नहीं 

सुनती हूँ वो (भूत ) कभी कभी, कहीं

दिख जाते हैं....... 

शायद वो ही कुछ 

इंसानियत कर जाएं !!

इंसानों के  इस सम्वेदनहीन शहर में

 कहीं  कोई भूत ही मददगार मिल जाए!!

सीमा श्रीवास्तव 

(यह एक व्यग्य है,...उन इंसानों पर...जो भूतों से तो डरते हैं.पर कुकर्म करने से नहीं डरते......)