Thursday, December 4, 2014

जंगल

जंगल लगातार छांटें   जा रहे हैं ,

जंगली जानवर भाग रहे हैं इधर उधर..

तरह तरह के मुखौटे और परिधान पहनकर 

पर सब में भूख ,प्यास तो वही है जानवरो जैसी । 

मीठे फल नहीं भाते उन्हें ,

सड़ाते हैं वो उसे जमीन के अंदर दबा के 

कि असर गहरा हो दिलो दिमाग पर 

फिर उसे पीकर वे नोंच डालते हैं 

अपने मुखौटे  और परिधान ,

दिखाने लगते हैं तरह तरह के करतब 

कि कितनी देर वो छुपा सकते हैं 

अपनी असलियत को ,

आखिर दम तो किसी का भी घुटता है 

परदों के पीछे ,मुखौटे के अंदर 

छोड़ो रहने दो इन्हें जानवरो  जैसा 

कि 
जंगल के निवासी को कहाँ भाते हैं बागीचे!!

-  सीमा श्रीवास्तव 

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