Monday, December 29, 2014

समंदर

     समंदर
ंंंंंंंंंंंंंंंं
कुछ रिश्ते ही तो
समंदर बन पाते हैं,
वरना नदियों सी बस
बहती जाती है जिंदगानी...)
सीमा श्रीवास्तव...
और ये रही मेरी पूरी रचना  जिसकी अंतिम चार पंक्तियो को मैने ऊपर लिखा है 
"मेरा और तुम्हारा रिश्ता
कई रिश्तो का संगम है
तभी तो यह बन चुका है समंदर,
हरदम कितनी मौजें उठती है इसमें,
कितनी लहरें आती हैं,जाती हैं....
कोई गोते लगा कर तो देखे
कितने अमूल्य धरोहर
दबा रखे हैं हमने
सच बडी मुश्किल से
कुछ रिश्ते समंदर
बन पाते हैं..
वरना नदियों सी
बहती जाती है
जिंदगानी...."
सीमा श्रीवास्तव

अब आप बताए..कि ऊपर की चार पंक्तियॉ..को ही लिख कर छोड दूं या पूरी रचना को लिखना जरूरी है...

2 comments:

  1. रचना तो चार पंक्तियों में ही पूर्ण हो गई सीमा जी।

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  2. जी.....धन्यवाद..शांतिदीप जी..

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