चुल्हा
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं
मैं हूं एक चूल्हा ....
माचिस की एक तिल्ली जलती है
फिर दूसरी,फिर तीसरी
जलाने के लिये आग,
आग लगती है,धुऑ उठता है
और सब कुछ धुंधला हो जाता है।
मैं जलना चाहती हूँ पर
गीले कोयले से उठता है धुऑ
और लोग उसे छोड दूर बैठ जाते हैंं....
सीमा श्रीवास्तव
(4 साल पुरानी है ये रचना..)
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मैं हूं एक चूल्हा ....
माचिस की एक तिल्ली जलती है
फिर दूसरी,फिर तीसरी
जलाने के लिये आग,
आग लगती है,धुऑ उठता है
और सब कुछ धुंधला हो जाता है।
मैं जलना चाहती हूँ पर
गीले कोयले से उठता है धुऑ
और लोग उसे छोड दूर बैठ जाते हैंं....
सीमा श्रीवास्तव
(4 साल पुरानी है ये रचना..)
अच्छी रचना
ReplyDeleteThank u..didi..:)
Deletebahut badhiya , gahre bhav liye huye ....
ReplyDeleteThank u...Upasna jee...:)
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