Monday, November 24, 2014

चूल्हा

       चुल्हा
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

मैं हूं एक चूल्हा ....

माचिस की एक तिल्ली जलती है

फिर दूसरी,फिर तीसरी

 जलाने के लिये  आग,

आग लगती है,धुऑ उठता है

और सब कुछ धुंधला हो जाता है।

मैं जलना चाहती  हूँ पर 

गीले कोयले से उठता है धुऑ

और लोग उसे छोड दूर बैठ जाते हैंं....

सीमा श्रीवास्तव

(4 साल पुरानी  है ये रचना..) 

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