Sunday, November 9, 2014

              मनहूस बस्ती 
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तितलियाँ यहाँ उड़ती नहीं 

 बैठी रहती हैं  किसी कोने में दुबककर

मरती नहीं ,पर हो चुकी है रंगहीन । 

फूल यहाँ खिलते हैं पर मुस्कुराते नहीं 

खिलना और मुरझाना एक 

दिनचर्या भर है । 

पंछी भी नहीं करते अपनी 

मनमर्जी यहाँ ,सुबह जागते हैं 

दाने  की खोज में विचर  के 

शाम होते ही 

दबे पाँव घोसले में 

घुस जाते हैं । 

रात को सपनों  में भी 

नहीं करते शोर !

क्योकि इस मनहूस बस्ती को 

प्रकृति के रंग नहीं भाते 

बस मशगूल रहते हैं लोग यहाँ 

इंसानो को मशीन में तब्दील करने को 

हवाओ की भी  किसी को नहीं परवाह 

कि सबने बंद कर रखी हैं 

अपनी खिडकियाँ यहाँ !!

सीमा श्रीवास्तव 






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