Monday, November 10, 2014

अँगीठी

        अँगीठी 
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घर की अँगीठी  जलती है तो 

पकता है  उसपर भोजन ,

तीज ,त्योहारो के पकवान 

पर हर रोज अंदर ही अंदर 

सुलगती है जो अँगीठी 

उससे जलता रहता है 

हमारा अपना ही खून !


कितनी बार ये जलती है 

कितनी बार हम इसे बुझाते हैं ,

हम गिन भी नहीं पाते 

हर दिन कुछ तीलियाँ 

रगड़ खा के भड़क जाती हैं 

और सुलग जाती है

 हमारे अंदर की अँगीठी 


इन अँगीठियो को भड़काने में 

कुछ लोग कोई कोर कसर नहीं छोड़ते कि 

वो वाकिफ होते हैं हमारे कमजोर पहलू से 


रोज चाहती हूँ कि सिर्फ 

घर की अँगीठी जलती रहे 

और तृप्त होती रहे 

हर सदस्य की जिहवा ,मन और उदर 

पर अंदर की अंगीठियाँ  भी जलने से 

कहाँ बाज आती हैं और 

प्रभावित कर ही जाती हैं 

घर की अँगीठियो को कहीं न कहीं! 


- सीमा श्रीवास्तव 


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