नहीं मिल रहे हैं शब्द
ना ही दो पल का सुकून
कि टुकड़ों में बंट गयी है जिंदगी
हाँ, अपनी कहॉ रह गयी है जिंदगी
कितने कतरनो को बटोरा मैंने,
कितने पैबंद लगाए हमने,
कितने रंगो से छुपाया सादापन,
फिर भी नही सज रही है जिंदगी
हाँ, अपनी कहॉ रह गयी है जिंदगी!!
सीमा श्रीवास्तव
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