Friday, November 28, 2014

समय की माँग

    समय की माँग 
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कभी कभी समय की मांग पे 

करवट ले लेता है अपने ही 

शब्दों का संसार ,
  लोगो का क्या है..?
..........*..............
  

मुझ पर भी कितने
लोग जाते हैं हस के 
चले जाते हैं

जब कभी दिख जाती हूँ मैं उन्हें 


पसीने से तरबतर चेहरे मे या
बिखरे हुये बालों मे


 या बिन मैचिंग दुप्पटे में,
हरबडाई सी खोलती
दरवाजे को,

कभी ड्राइंग रूम के बिखरे
कुशन पे  हंस देते है,


कभी किचेन मे
फैले बर्तनों पे चुटकी लेते है....

लोगो का क्या है..! 


अचानक ही तो घुस आते है,
किसी की भी जिंदगी में अधीर से


और जो दिख पडता है.उससे
ही गढ लेते है आपकी एक तस्वीर...


सीमा श्रीवास्तव 
कई नई परिभाषाऍ ,

ले लेती हैं जगह. ……… 

बदल जाते है कई भाव

 मन के ,

कि एक अहमियत 

बदल देती है 

आपकी दिनचर्या ,

आपकी रुचि ,

आपके शौक ,

आपका किरदार....

सीमा श्रीवास्तव 



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