Sunday, October 19, 2014

तन्हाई

      तन्हाई 
>>>>><<<<<<


तन्हाई आ पसरती है 

मन के आँगन में !

जब अपने सवालो का 

हल नहीं मिलता ,

जब सारे प्रयास 

हो जाते हैं असफल ,

सारी प्रार्थनाएँ 

हो जाती हैं  अनसुनी ,


जब सही और गलत 

गूँथ जाते हैं एक दूसरे में 

तब चुपके से तन्हाई आती है 

मन के आँगन पर छा जाती है 

तब नहीं होती कोई जिज्ञासा ,

बस होती है एक उकताहट ,

थकावट और सुस्ती !!

जिंदगी लगने लगती है 

एक अनचाहा सफर 

और हम थके  हुए मुसाफिर !!

सीमा श्रीवास्तव 

(होता है ऐसा हर दस में से एक के साथ )


No comments:

Post a Comment