तन्हाई
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तन्हाई आ पसरती है
मन के आँगन में !
जब अपने सवालो का
हल नहीं मिलता ,
जब सारे प्रयास
हो जाते हैं असफल ,
सारी प्रार्थनाएँ
हो जाती हैं अनसुनी ,
जब सही और गलत
गूँथ जाते हैं एक दूसरे में
तब चुपके से तन्हाई आती है
मन के आँगन पर छा जाती है
तब नहीं होती कोई जिज्ञासा ,
बस होती है एक उकताहट ,
थकावट और सुस्ती !!
जिंदगी लगने लगती है
एक अनचाहा सफर
और हम थके हुए मुसाफिर !!
सीमा श्रीवास्तव
(होता है ऐसा हर दस में से एक के साथ )
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तन्हाई आ पसरती है
मन के आँगन में !
जब अपने सवालो का
हल नहीं मिलता ,
जब सारे प्रयास
हो जाते हैं असफल ,
सारी प्रार्थनाएँ
हो जाती हैं अनसुनी ,
जब सही और गलत
गूँथ जाते हैं एक दूसरे में
तब चुपके से तन्हाई आती है
मन के आँगन पर छा जाती है
तब नहीं होती कोई जिज्ञासा ,
बस होती है एक उकताहट ,
थकावट और सुस्ती !!
जिंदगी लगने लगती है
एक अनचाहा सफर
और हम थके हुए मुसाफिर !!
सीमा श्रीवास्तव
(होता है ऐसा हर दस में से एक के साथ )
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