Saturday, October 4, 2014

उम्मीदें




माँ की हर बात होती है 

हक़ीक़त से जुडी ,

नहीं होती ,कोरी कल्पना 

हाँ एक सपना जरूर

सजा करता है और 

आँखों के कोर पर   नमी सी 

दिख पड़ती है अक्सर । 

माँ उम्मीदें करती  है और 

 वो उम्मीदें नहीं होती जिद ॥

उम्मीदें बस उम्मीदें होती हैं या

 ले लेती हैं  वो

दुआओं का शक्ल.....

 उम्मीदों को पूरा करती हैं,

इच्छा शक्ति,मेहनत और लग्न..


कोशिशें  यूं ही जारी रहेंगीं....

सपने यूं ही सजते रहेंगे....,

कुछ पूरे होंगे ,कुछ टूटेंगे भी..

सपनो के बादल यूं ही उमडते रहेंगे..

तभी तो कोई चांद पर कोई मंगल

पर जाया करेगा.....

देश का तिरंगा विदेश में लहराया करेगा

इस दीवाली पर और भी कई लाल 

विजय का पताका लहरायेंगे,

घर घर में खुशियों के दीप जगमगायेंगे।


सीमा श्रीवास्तव....







4 comments:

  1. माँ की सरपरस्ती के साए में वतनपरस्ती का अद्भुत अंदाज़, मानों कलमपरस्ती का एक नया आगाज़! बहुत बढ़िया मैडम!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी...

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  2. सपनो का कोई अंत नहीं ..
    बहुत अच्छी जनकल्याण की सोच भरी सुन्दर रचना

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    1. तहेदिल से शुक्रिया कविता जी....:),..

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