Friday, October 31, 2014

रेत मत होने दो इसे




 पत्थरो को रेत होने में तो 

सदियाँ बीत  जाती हैं ,

पर आदमी टूट जाता है 

एक जीवन में ही 

होकर किसी गहरी चोट का शिकार 

और रेत रेत हो जाती है जिंदगी । 

यही तो फर्क होता है

 आदमी और पत्थर में

पत्थरों को तोड़ना आसान नहीं 

पर आदमी कभी भी टूट सकता है 

पर टूटो नहीं हौसला रखो 

फौलादी इरादे रखो 

पत्थर दिल मत बनो पर 

रेत मत होने दो ज़िंदगी को । 


सीमा श्रीवास्तव 

Wednesday, October 22, 2014

  दिए जलते हैं
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(1)
कुछ दीप मुरादों के ,

कुछ दीप उम्मीदों के। 

कुछ एहसासो के,

कुछ भावनाओ के । 

हर दीप की लौ है

एक  जैसी

पर जलते रहे वो 

 अपनी अपनी रौ में !!


रौ = गति,चाल,बहाव

   ( 2)

हर दीप  जलाते समय

 मन  अलग अलग

एहसासो से गुजरता होगा

कहो ना!! कौन सा दीप

सच में मेरे लिए

जलता होगा...


‌-सीमा श्रीवास्तव

Tuesday, October 21, 2014

देखा है कई ऐसे चेहरों को 
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जब सृजन की इच्छा 

जग जाती है मन में ,

तब सजने की चाह 

कम हो जाती है । 

मन करता जाता है सृजन ,

रहने लगता है खुद में  मगन  । 

जैसे माली हो जाता है 

 समर्पित

फूलो की देख ,रेख में ,

एक लेखक को  भी  कहाँ 

भूख ,प्यास सताती है !

अपनी रचनाओ से ही 

होता है तृप्त वो ,

 लेखनी  ही उसकी 

प्यास मिटाती है !!

सीमा श्रीवास्तव 

(अपने काम के प्रति समर्पित रचनाकारों के लिए )



Sunday, October 19, 2014

     शुभ दीपावली
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चलो फिर से घरौंदे बनाते हैं ,

दीवाली की रौनक बढ़ाते हैं । 

छोटी छोटी खुशियो में खुश हो के 

उमंगो के नए दीप जलाते हैं । 

नमक ,तेल ,ईंधन से दूर हट के 

मिटटी ,बालू से हाथ मिलाते हैं ।

छोटे टेबल ,छोटे सोफों को जोड़ के 

फिर से अपना अड्डा जमाते हैं । 

अपने बेटे, बेटियो को चलो  पुराने 

रस्मो से मिलना जुलना सिखाते हैं । 

चलो फिर से घरौंदे बनाते हैं ,

दीवाली की रौनक बढ़ाते हैं । । 

सीमा श्रीवास्तव 

तन्हाई

      तन्हाई 
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तन्हाई आ पसरती है 

मन के आँगन में !

जब अपने सवालो का 

हल नहीं मिलता ,

जब सारे प्रयास 

हो जाते हैं असफल ,

सारी प्रार्थनाएँ 

हो जाती हैं  अनसुनी ,


जब सही और गलत 

गूँथ जाते हैं एक दूसरे में 

तब चुपके से तन्हाई आती है 

मन के आँगन पर छा जाती है 

तब नहीं होती कोई जिज्ञासा ,

बस होती है एक उकताहट ,

थकावट और सुस्ती !!

जिंदगी लगने लगती है 

एक अनचाहा सफर 

और हम थके  हुए मुसाफिर !!

सीमा श्रीवास्तव 

(होता है ऐसा हर दस में से एक के साथ )


Saturday, October 18, 2014

सुकून

सुकून  


कुछ दिन तो और ठहरते 

 सुकून  वाले दिन रात 

जहाँ मौसम होता राहतवाला । 

ना गर्मी की तपिश ,

ना सर्दी की कपकपाहट ,

ना बारिश की किचकिच ,

ना धूल और गर्द का आतंक 

पर ऐसा मौसम कहाँ ठहर पाता है !!

नहीं रह पाता सुकून  ,

जब मौसम अपना  असली रूप दिखाता है !!

हल्की हल्की ठंढ़ धीरे धीरे 

होती जाती है क्रूर!!

धीरे धीरे दिखने लगता है इसका  ग़ुरूर । 

राहत वाले पल बोलो कब ठहरा 

करते हैं ,

सुकून  वाले दिन बस कुछ पल के 

मेहमां होते हैं!!!

- सीमा श्रीवास्तव 








Thursday, October 16, 2014

          चलते चलते 
  ******************

कभी राजकुमारी वाली 

कहानियाँ बहलाती हैं ,

कभी सफ़ेद घोड़े वाला 
राजकुमार ,

कभी परियाँ फुसलाती हैं ,

कभी उनके  उपहार  । 


 कभी कोई   ख़ूबसूरत चेहरा  

है गुमराह करता ,

कभी व्यथित कर जाता  

 उसका व्यवहार ।  

कितने रस्तो से गुजरते 

हम बड़े तो
  हो जाते हैं ……

फिर भी बचपन पीछा 

करता है बार बार.........

और 

छोङ देते हैं जब हम 

ख़्वाब देखना ,

तभी कोई ख़्वाब 

कर जाता है चमत्कार । 

किस्मत ,नियति ,भाग्य ,लकीरें 

कहो ना ! क्या सच होती हैं यार !!


- सीमा श्रीवास्तव 

Wednesday, October 15, 2014

शब्द



कितने कीमती होते थे,
तुम्हारे हॉ और ना भी
मेरे लिए,
कि तुमने उन्ही
शब्दो में समेट
रखा था जो
वजूद अपना.......

सीमा श्रीवास्तव 
सीमा ....

कविताएँ


 कभी सोच कर

 लिखी जाती हैं कविताएँ ,

 कभी यूँ ही चले आते हैं 

 कुछ भाव ,उछलते ,कूदते 

कि अगर उन्हें कागज़ पर 
 ना सहेजो तो 

 भाग भी जाते हैं। 

कभी तन्हाईयो के बीच 

पीछे से आकर आँखे बंद 

कर जाते हैं कुछ भाव और 

दूर हो जाती है तन्हाई  ।      

कभी बैचैनी में 

छटपटाते कुछ शब्द 

चाहते हैं सुकून  और 

लेट जाते हैं 

कागज़ के पन्नो पे आकर । 

बस ऐसे ही चलते-फिरते ,

दौड़ते- भागते 

जन्म लेती रहती हैं कविताऍ  । 


- सीमा श्रीवास्तव 

Tuesday, October 14, 2014

खुशियों की दस्तक

     खुशियोकी दस्तक
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आज मन में बहुत गिरावट है,
शायद उम्मीदों की माँग 
आज फिर है
अपनी चरम सीमा पे।
चलो यह सोच के दिल बहला लें
कि खुशियों की दस्तक
हो सकती है कभी भी...

सीमा श्रीवास्तव...



Monday, October 13, 2014

पंछी

 

चिड़िया ठक, ठक की आवाज़ कर के 

चाहती है घर  में आना । 
कितनी प्यारी  बात  है ना ,वह  घर के अंदर 
ढूँढ़ती है अपना आशियाना । 
पर सबने बंद कर रखी हैं 
अपने- अपने घरों की खिड़कियों! 

ठक- ठक  करते- करते उसके चोंच 
ना घायल हो जाए ,
खोल दो एक खिड़की को 
ताकि वह अंदर आ पाए । 




सीमा श्रीवास्तव 

(छोटी छोटी चिड़िया विलुप्त होती जा रही हैं । 
हम सभी को उनको बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए। 

इसके लिए अपने आस पास के पेड़ो पर प्लास्टिक के डब्बो को 

डिजाईन कर के लटकाये ताकि वे उसमे अपने घोसले बना सके ।

यह  बस एक सन्देश है ।  ) 


Sunday, October 12, 2014

झरना

   १                        झरना 
               ################

     खुदा की बिछाई हुई 
   
   पानी की  चादर । 

     आवशार कहो या 

    चश्म कहो इसे । 

झरना = आवशार ,चश्म ,पानी की चादर 

२ 

                ज्ञान 
        ############

दानिश, इल्म ,इर्फ़ान 

  ये है अपनी फसल ।  

जितना जो पढ़ेगा ,

  बढेगी उसी की अक़्ल ॥ 

ज्ञान =  दानिश ,इल्म इर्फ़ान ,अक़्ल 


   _ सीमा श्रीवास्तव

        

बागीचा ज्ञान


बागीचा ज्ञान 
()^^^^^^^^^ ()

कोड़ आई हूँ ,


पौधों   के आसपास की मिटटी,


तोड़  आई हूँ ,  उन पीले पत्तों  को


जो बस सड़ने  ही वाले थे।


कि पौधों  के पास


नहीं  है ऐसे हाथ 


जिनसे वो निकाल सके

उन पीले पत्तों  को


और कोड़  सके अपने


नीचे की जमीन को। 


हाँ ,


होती है


बहुत जरुरी 


मिटटी की कोड़ाई 


कि सिर्फ खाद पानी


 भर से ही


बढते नही पौधे। 



..
सीमा. श्रीवास्तव

Friday, October 10, 2014

उम्मीद

                                जुगाड़ 
                           _________                                    

कुछ उम्मीदो को

सिरहाने रख के सोती हूं मैं,

तभी तो जागती भी हूँ 

एक  नयी हिम्मत के साथ।

कुछ चाहतों का रोज 

दामन पकडती हूँ  मैं,

ताकि जिंदा  रहने की

चाह बनी रहे....

कुछ हौसलो को रोज

सहलाती हूं मैं,

तभी तो हौसले भी

देते रहते है  साथ....

सीमा श्रीवास्तव 

Thursday, October 9, 2014

गृहणी

                                                    ^^^^^^^^^^^ 
                                                          गृहणी 

                                                      ########
बहुत कुछ अनपढा ही


रह जाता है..

छूटता जाता है  .... 

अखबार के पन्ने ,

किताबे,कोई अच्छा आलेख

अफसोस तो होता है,पर

करे तो क्या करे...हम!!

कपड़ो  को तह लगाते हाथ

 अल्मारी पर जमे धूल


को तकती आँखे,उधर खाने 


का हिसाब किताब लगाता

दिमाग,सोचना ही सोचना,

और करना ही करना..

है हर वक़्त,



देखो ना,

चूल्हे पर चढ़े दोनों  कूकर की 

 सीटियाँ भी हिल हिल के कह 

रही हो मानो कि नारी तुम पर

है बहुत सारी  जिम्मेवारी

 दिन भर की। ....... 


सीमा श्रीवास्तव 

Wednesday, October 8, 2014

यादें



छुट्टियों में जब 

घर जाती हूँ ,

माँ  के घर से

 लेकर आती हूँ

सौगाते और छोड़  

आती हूँ यादे ,किस्से ,

जिन्हे वो डायरी के

 पन्नो की तरह

 उलटती, पलटती 

रहती हैं ,

सोते, जागते ,उठते ,बैठते ||

सीमा श्रीवास्तव 




Tuesday, October 7, 2014

                    पहेली 
               ^^^^^^^^^^^

तुम जब दूर चले जाते हो 

तब ले जाते हो ,

मेरी सारी ऊर्जा भी अपने साथ ॥ 

फिर बिगड़ जाता है मेरा संतुलन । 

हाँ तुम्हारे होने से मैं  रहती हूँ 

हल्का फुल्का

ठीक  तराजू के   पलड़ो की तरह 

जिसके एक पलड़े पे तुम रहते हो 

और दूसरे पर मैं.…… 

मेरा पलड़ा हमेशा ऊपर रहता है 

तुम , वजनदार जो हो !!

बस यही वजह है कि मैं 

 रहती  हूँ हल्का - फुल्का 

तुम    हमेशा अपने हिसाब में 

 मुझे हराते रहे हो और 

कविता से पीछा छुड़ाते रहे हो । 

पर एक बार देखो तो सही 

ये कोई कविता नहीं,

ये तो एक पहेली है जो 

पहेली ही रहेगी सुलझने के बाद भी 

तुम्हारा पलड़ा जमीन को छूता रहेगा 

और मैं तुम्हे ऊपर से देखा करूँगी !!

-सीमा श्रीवास्तव 

(बस यूँ ही ,एक मीठी सी नोंक झोंक  )







Monday, October 6, 2014

पिता



पिता नहीं चाहते बदलना 

अपने शौक ,तौर तरीके,

रहन सहन ,बात व्यवहार …

पर माँ जानती है बदलना खुद को ।

बच्चों की खुशियो की खातिर , 

वह समेट लेती है अपनी खुशियाँ ।

और पिता फैला के रखना चाहते हैं 

अपना साम्राज्य .....कि

उन्हे नही पसंद कोई उलट फेर

समझौते , दखलअंदाजी !!

-  सीमा श्रीवास्तव 

( मेरा इरादा किसी को ठेस पहुँचाना कतई नहीं )

आँसू

                आँसू
      **************

क्यों आँखों मेँ अचानक मचल आये  ये आँसू ,

रोके से कहाँ रूकते छलक आये ये आँसू । 

कोई वश नहीं इनपर ,कब ढलक जाए ये आँसू ,

आँखों में घटा -सी उमडी ,बरस जाए ये आँसू । 

इनकी मर्जी का थाह ,कब किसे चल पाया ,

किस बात पर कब बहक जाए ये आँसू । 

इन आँसूओ का रंग क्या ?कोई रंग नहीं इनका ,

बस दिल की बात चेहरे पर लिख जाए ये आँसू । । 

सीमा श्रीवास्तव
.... 

Saturday, October 4, 2014

उम्मीदें




माँ की हर बात होती है 

हक़ीक़त से जुडी ,

नहीं होती ,कोरी कल्पना 

हाँ एक सपना जरूर

सजा करता है और 

आँखों के कोर पर   नमी सी 

दिख पड़ती है अक्सर । 

माँ उम्मीदें करती  है और 

 वो उम्मीदें नहीं होती जिद ॥

उम्मीदें बस उम्मीदें होती हैं या

 ले लेती हैं  वो

दुआओं का शक्ल.....

 उम्मीदों को पूरा करती हैं,

इच्छा शक्ति,मेहनत और लग्न..


कोशिशें  यूं ही जारी रहेंगीं....

सपने यूं ही सजते रहेंगे....,

कुछ पूरे होंगे ,कुछ टूटेंगे भी..

सपनो के बादल यूं ही उमडते रहेंगे..

तभी तो कोई चांद पर कोई मंगल

पर जाया करेगा.....

देश का तिरंगा विदेश में लहराया करेगा

इस दीवाली पर और भी कई लाल 

विजय का पताका लहरायेंगे,

घर घर में खुशियों के दीप जगमगायेंगे।


सीमा श्रीवास्तव....







Wednesday, October 1, 2014

    आपके लिये
()()()()()()()()()()
           (1)

        बंदगी
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं

परसतिश ,इबादत,तस्लीम

हर  शब्द में बंदगी है।

आज के  माहौल मे तेरी

 खिदमत का ही सहारा है!!

             ( 2)
     जन्नत
ंंंंंंंंंंंंंंंंंं
स्वर्ग, जन्नत,बाग

ये जमी बन जायेगी,

हर शख्स की गर

तबियत बुलंद हो जाए

बाग=स्वर्ग

       ( 3)

      ठिकाना
ंंंंंंंंंंंंंंंंं

मसकन ,जगह,मुकाम की,

हर शख्स को तलाश है।

हर दिल गुजर करने को

एक आशियाना ढूंढता  है !!

सीमा श्रीवास्तव.......