Monday, September 22, 2014

मेरी कविता

    मेरी कविता 
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मेरी कविता ,नहीं ले   जाती मुझे 

झरनो - पहाड़ो पर 

 ना  ही धरती से दूर 

उन चाँद - तारो पर 

अपने आस पास ,

इर्द- गिर्द कितना कुछ 

अनछुआ रह जाता है 

और हम विचरते है 

नदियों,  झरनो,  पहाड़ो पर ,

गढ़ते है कहानियाँ

....   चाँद  - तारो पर 

पर मै सहज भाव से

लिखना चाहती हूँ 

अपने आस पास के 

अनछुए सुख- दुःख 

जिसे ना चाँद ने 

समझा ना तारों ने 

ना झरनों ने महसूस 

किया  ,ना पहाड़ो ने !!

सीमा श्रीवास्तव 


2 comments:

  1. हकीकत की धरातल को लिखना आसान नहीं हो पाता तभी कल्पना का सहारा लेते हैं लोग ...

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  2. धन्यवाद दिगम्बर जी....:)

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