Saturday, September 6, 2014

शब्दों के मुसाफिर

                  शब्दों के मुसाफिर

किसी कवि की कविता

 एक नाव  होती है

जिसमे शब्दों के मुसाफिर

अलग  अलग भाव लेकर

आते जाते   रहते है ,

तय  करते  रहते   है

अपना   सफर ,

कहते रहते है

 अपनी अनकही  कहानियाँ ।

 उन मुसाफिरों की  वही

समझ सकता है ,

जो पढ़ सकता है

उनके दिल  की भाषा

नही तो  बाक़ी हँस देते है

कुछ फब्तियाँ कसते हैं

और जो नहीं समझ पाते

वो अनदेखा करके

चले जाते है। .......

सीमा श्रीवास्तव

edited..

कवितायें
होती हैं एक नाव सी
जिसमे शब्दों के मुसाफिर
अलग अलग भाव लेकर
आते जाते रहते है ,
तय करते रहते है
अपना सफर ,
कहते रहते है
अपनी अनकही कहानियाँ ।
उन मुसाफिरों की वही
समझ सकता है ,
जो पढ़ सकता है
उनके दिल की भाषा
नही तो कुछ हँस देते है
कुछ फब्तियाँ कसते हैं
और जो नहीं समझ पाते
वो अनदेखा करके
चल देते है। .......
सीमा श्रीवास्तव

8 comments:

  1. हँसनेवाले हँसा करेंगे, कहनेवाले फिर भी कहा करेंगे, जो मन की आँखों से मन के भाव पढ़ा करते हैं, कविता केवल ऐसे ही लोग गढ़ा करते हैं. "शब्दों के मुसाफिर" बेशक यथार्थपरक कविता है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार मनोज जी..

      Delete
  2. जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी...:)

      Delete
  3. किसी कवि की कविता .....
    अनुपम भाव संयोजन ....

    ReplyDelete
  4. sahi kaha ..kavi ki kavita kisi bhi man ki abhivyakti ho sakti hai ..:) umda rachna badhayi seema :)

    ReplyDelete
  5. धन्यवाद सुनीता,,,

    ReplyDelete