Monday, September 1, 2014

प्रकृति

                                                                          प्रकृति


प्रकृति...
तुम ना जाने
कितने रूप,
कितने रंग,
कितने भाव
समेटी हो खुद मे...


प्रकृति..
तुम, निस दिन
नये रूप धरती हो
कितनी चंघलता 
है तुम मे..


हम खुद को
रोज सवारते हैं
तुम रोज ही
कर देती ही..कुछ
इधर उधर

कुछ नया
रचने के लिये,
कुछ नया
पाने के लिये,


तुम कितने
परदे गिराती हो,


कितने चरित्र
निभाती हो..!!

सीमा श्रीवास्तव 

6 comments:

  1. प्रकृति और इसकी अद्भुत छटा..कितनी निराली और मनमोहक ! :)

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  2. Ji...Preeti ji...ushe hi kahne ka pryaas kiya hai maine apne man ke bhaav ke anuroop...,Thank u..Preeti ji...:)

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  3. प्रकृति - एक अनबूझ पहेली सी, समझदारों की सहेली सी, प्रकृति हैं तो जिस्म में जाँ है, सच ही प्रकृति जीवनदायिनी माँ है. आपने चाँद शब्दों में प्रकृति का अति सुन्दर चित्रण किया है. बढ़िया!

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    1. आप अपनी हर टिप्प्णी के साथ कुछ बढिया सा संदेश दे जाते है..।शुक्रिया मनोज जी...

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  4. रचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.....सुन्दर कविता.....

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    1. तहेदिल से शुक्रिया संजय जी...

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