Friday, August 29, 2014

घायल

(१)
तोड़ना चाहते  थे ना
लो  टूट चूकी हूँ मैं

समेटना चाहोगे भी तो
समेट  नहीं पाओगे ।

(२ )

तोड़  के मुझको
बोलो  भला  क्या पाओगे

नोक  से    इनकी
 घायल ना तुम हो जाओ कही.

सीमा श्रीवास्तव

(बस यूँ ही ,एक उदास चेहरे पर लिखे शब्द ) 

2 comments:

  1. कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

    शब्दों की मुस्कुराहट पर ...विषम परिस्थितियों में छाप छोड़ता लेखन

    ReplyDelete
  2. Thanks a lot Sanjay ji..
    Bilkul bas ja rahi hu aapke blog par...:)

    ReplyDelete