Saturday, August 30, 2014

बेबाक


वो लिखती है बेबाक
पूरे धडल्ले से वो
कह जाती है ,
सारी बातें,जिन्हे
हम कहने से कतराते है
या टाल जाते हैं......
वो बिल्कुल भी नही
हिचकिचाती
अपने अंतर्मन की सारी
कथा कह जाती..!
हम सोचने लगते है,
कहे ना कहे,
तब कलम भी
चलती है रूक रूक के
और शब्द भी
नही बांधं पाते
एक दूसरे को...
कुछ देर बाद हम खुद ही
भूल जाते हैं कि
हमें...कहना
क्या था ...
बाते रफा दफा हो
जाती हैं,पर अंकित
रह जाती हैं,गहरे मे कहीं
दिलो दिमाग के अंदर !
पता है.....,
बदन पर कभी कभी
जो फुंसियॉ उभर आती हैं
वे उन्ही अंनकहे बातो की
निशानी है,.....
जिन्हे दबा चुके होते हैं
हम गहराई मे....
उन्ही फुंसियों को,
फिर अपने ही नख से नोंच कर
हम बना डालते हैं घाव...
जिंनकी टीस उठती रहती
है ताउमर....
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सीमा

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