वो लिखती है बेबाक
पूरे धडल्ले से वो
पूरे धडल्ले से वो
कह जाती है ,
सारी बातें,जिन्हे
हम कहने से कतराते है
या टाल जाते हैं......
सारी बातें,जिन्हे
हम कहने से कतराते है
या टाल जाते हैं......
वो बिल्कुल भी नही
हिचकिचाती
अपने अंतर्मन की सारी
कथा कह जाती..!
अपने अंतर्मन की सारी
कथा कह जाती..!
हम सोचने लगते है,
कहे ना कहे,
तब कलम भी
चलती है रूक रूक के
और शब्द भी
नही बांधं पाते
एक दूसरे को...
कहे ना कहे,
तब कलम भी
चलती है रूक रूक के
और शब्द भी
नही बांधं पाते
एक दूसरे को...
कुछ देर बाद हम खुद ही
भूल जाते हैं कि
हमें...कहना
क्या था ...
भूल जाते हैं कि
हमें...कहना
क्या था ...
बाते रफा दफा हो
जाती हैं,पर अंकित
रह जाती हैं,गहरे मे कहीं
दिलो दिमाग के अंदर !
जाती हैं,पर अंकित
रह जाती हैं,गहरे मे कहीं
दिलो दिमाग के अंदर !
पता है.....,
बदन पर कभी कभी
जो फुंसियॉ उभर आती हैं
वे उन्ही अंनकहे बातो की
निशानी है,.....
जिन्हे दबा चुके होते हैं
हम गहराई मे....
बदन पर कभी कभी
जो फुंसियॉ उभर आती हैं
वे उन्ही अंनकहे बातो की
निशानी है,.....
जिन्हे दबा चुके होते हैं
हम गहराई मे....
उन्ही फुंसियों को,
फिर अपने ही नख से नोंच कर
हम बना डालते हैं घाव...
जिंनकी टीस उठती रहती
है ताउमर....
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फिर अपने ही नख से नोंच कर
हम बना डालते हैं घाव...
जिंनकी टीस उठती रहती
है ताउमर....
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सीमा
bahut sahi !
ReplyDeleteThank u Anuj...,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता का सृजन, आपका धन्यबाद।
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawaad Sanjay ji...
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