पत्थर के शहर
में पली
पत्थर सी हो गई
औरत
खोजती है उस
राम को
जो उसे
छू के ,फिर से
कर दे सजीव
निखरने दे
उसके जीवन को
सँवरने दे
उसके उपवन को
सीमा श्रीवास्तव
में पली
पत्थर सी हो गई
औरत
खोजती है उस
राम को
जो उसे
छू के ,फिर से
कर दे सजीव
निखरने दे
उसके जीवन को
सँवरने दे
उसके उपवन को
सीमा श्रीवास्तव
बढ़िया कविता
ReplyDeleteधन्यवाद अनुज...,
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