Sunday, August 24, 2014

मुश्किल

मुश्किल होता है ना!!!
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं।।

कितना मुश्किल
होता है ना,

मॉ की बातो
को काटना..,

पिता की हर
पाबंदी के
अंदर हंसना बोलना,

सदियो से चली
आ  रही परम्पराओ
को ढोना और
लकीर के फकीर
बने रहना..,

तीज त्योहारो के
नियमो मे फेर बदल,

अपनी तबीयत के
 हिसाब से
 उठना जगना..,

आसान नही
है अपने हिसाब से
अपने रास्ते तय
कर पाना..,
बिना रोक टोक
के जी पाना


बेगुनाह होते
हुए भी
 सजा  पाना..।
शायद इसे ही कहते है
समाज का एक
हिस्सा बन जाना..।

- सीमा श्रीवास्तव


5 comments:

  1. अभी ये कविता ठीक से पकी नही..,फिर भी इसे रख दिया है आपके सामने..
    आपके सुझावो का स्वागत है...,

    ReplyDelete
  2. बेगुनाह होते
    हुये भी कुछ
    सजा पाना

    इसे ही कहते है
    शायद समाज
    का एक
    हिस्सा बन जाना
    ..... समाज का हिस्‍सा बनकर ही तो इतना कुछ निभाना पड़ता है
    बहुत ही अच्‍छा लिखा है

    ReplyDelete
  3. सदा....बहुत सारा स्नेह आपको....

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर बात कही …और सच भी तो है

    ReplyDelete
  5. धन्यवाद उपासना जी....

    ReplyDelete