मुश्किल होता है ना!!!
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं।।
कितना मुश्किल
होता है ना,
मॉ की बातो
को काटना..,
पिता की हर
पाबंदी के
अंदर हंसना बोलना,
सदियो से चली
आ रही परम्पराओ
को ढोना और
लकीर के फकीर
बने रहना..,
तीज त्योहारो के
नियमो मे फेर बदल,
अपनी तबीयत के
हिसाब से
उठना जगना..,
आसान नही
है अपने हिसाब से
अपने रास्ते तय
कर पाना..,
बिना रोक टोक
के जी पाना
बेगुनाह होते
हुए भी
सजा पाना..।
शायद इसे ही कहते है
समाज का एक
हिस्सा बन जाना..।
- सीमा श्रीवास्तव
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं।।
कितना मुश्किल
होता है ना,
मॉ की बातो
को काटना..,
पिता की हर
पाबंदी के
अंदर हंसना बोलना,
सदियो से चली
आ रही परम्पराओ
को ढोना और
लकीर के फकीर
बने रहना..,
तीज त्योहारो के
नियमो मे फेर बदल,
अपनी तबीयत के
हिसाब से
उठना जगना..,
आसान नही
है अपने हिसाब से
अपने रास्ते तय
कर पाना..,
बिना रोक टोक
के जी पाना
बेगुनाह होते
हुए भी
सजा पाना..।
शायद इसे ही कहते है
समाज का एक
हिस्सा बन जाना..।
- सीमा श्रीवास्तव
अभी ये कविता ठीक से पकी नही..,फिर भी इसे रख दिया है आपके सामने..
ReplyDeleteआपके सुझावो का स्वागत है...,
बेगुनाह होते
ReplyDeleteहुये भी कुछ
सजा पाना
इसे ही कहते है
शायद समाज
का एक
हिस्सा बन जाना
..... समाज का हिस्सा बनकर ही तो इतना कुछ निभाना पड़ता है
बहुत ही अच्छा लिखा है
सदा....बहुत सारा स्नेह आपको....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही …और सच भी तो है
ReplyDeleteधन्यवाद उपासना जी....
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