Monday, August 25, 2014

सुख - दु:ख

रोज छाँटती हूँ
दिन की थाली से
दुःख के कुछ
कंकड़ पत्थर ,

रोज निकालती हूँ
मन से विकारों को
और जलाती हूँ
घर में ,
धूना ,बाती ,अगर

सीमा श्रीवास्तव

अगर  = अगरबत्ती

3 comments:

  1. सीधी सच्ची कवितायें ... रोज के जीवन की !

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  2. settings में जाकर शब्द सत्यापन बंद कर लें , कमेंट में समस्या आती है इससे !!

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  3. शुक्रिया अनुज जी...

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