रोज छाँटती हूँ
दिन की थाली से
दुःख के कुछ
कंकड़ पत्थर ,
रोज निकालती हूँ
मन से विकारों को
और जलाती हूँ
घर में ,
धूना ,बाती ,अगर
सीमा श्रीवास्तव
अगर = अगरबत्ती
दिन की थाली से
दुःख के कुछ
कंकड़ पत्थर ,
रोज निकालती हूँ
मन से विकारों को
और जलाती हूँ
घर में ,
धूना ,बाती ,अगर
सीमा श्रीवास्तव
अगर = अगरबत्ती
सीधी सच्ची कवितायें ... रोज के जीवन की !
ReplyDeletesettings में जाकर शब्द सत्यापन बंद कर लें , कमेंट में समस्या आती है इससे !!
ReplyDeleteशुक्रिया अनुज जी...
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