Saturday, August 23, 2014

शेखचिल्ली

शेखचिल्ली से
सपने देखता
बचपन तय
करता है
कई रस्ते ।

सपनो की
टोकरी में
हिलते डुलते
अंडे क़ुछ
टूट जाते हैं ,
और   जो
बच जाते  है
उनसे निकलते हैं
फिर चूजे और
इधर उधर
भागते हैं

सीमा श्रीवास्तव

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