Friday, August 1, 2014

आपाधापी

आज फिर मेरी
कंघी गुम हो गई 
कहीं … 
ये कंघिया ,
ये पेन ,और ऐसी 
ही कुछ छोटे मोटे 
चीज ,अक्सर  
ही खो जाते  है 
जीवन की
 आपा धापी  मेँ ,
और फिर हम 
उन्हें ढूंढ़ते  फिरते  हैं 
क्यूंकि  हम अपनी ही 
कंघी से केश सँवारना 
चाहते हैं और अपने  ही 
कलम से लिखना चाहते है 

पर  इन्हें संभाल कर रखना
भूल जाते हैं इस
 जीवन की 
आपा धापी  में! 

सीमा श्रीवास्तव 

9 comments:

  1. एक आदमी की ज़िंदगी कितनी परेशान हो जाती है, कोई ठिकाना नही. लेकिन हार कर युद्ध का मैदान छोड़ा जा सकता है, ज़िन्दगी का मैदान छोड़ कर कहाँ भागे आदमी? यह तो सीधे मृत्यु को निमंत्रण देना है. यह अर्थशास्त्र का अध्याय नहीं, ज़िंदगी का अध्याय है. बड़ी बारीकी और बड़ी साफगोई के साथ पढ़ना पड़ता है इसे. पढ़-पढ़ कर इम्तेहान देना पड़ता है. इस इम्तेहान में फेल करने की गुंजाईश नही. ज़िंदगी है तो अपने है, अपने हैं तो प्यार है, प्यार है तो कर्तब्य की पुकार है, पुकार है तो कर्म है, कर्म है तो धर्म है, धर्म है तो हम हैं और हम हैं तो संसार है. संसार की सांसारिकता में भाग-दौड़ है, आपाधापी है - बड़े उद्देश्य के लिए, बड़े लक्ष्य के लिए, उदास चेहरों पर मुस्कुराहटों की लकीर खींचने के लिए। सो, छूट जाती हैं छोटी-छोटी चीजें और बातें। पर नहीं छूटतीं मन में आते विचारों की आहटें, आये हुए विचारों की मुस्कुराहटें, कलम खो जाने पर भी कुछ लिखने की कुलबुलाहटें। ब्लॉग की क्रमिक गतिशीलता के लिए बधाई !

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  2. अपनी कोई भी चीज बहुत प्यारी होती है हमे..।पर आज की इस तेज रफ्तार वाली जिंद्गी मे हमारे पास समय कहॉ होता है....छोटे छोटे खुशनुमा पलो को समेटने और सहेजने के लिये,...अपनो को समझने के लिये..।उनकी कमी फिर भी खलती जरूर है,जब उनकी बेहद जरूरत होती है..और हमे पता होता है कि कोई दूसरा उस कमी को पूरा नही कर सकता....।.धन्यवाद मनोज जी आपने कुछ और भी अच्छी बाते कह डाली...अपने नजरिये से...

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  3. बहुत प्यारी चीज के खोने का गम तो होता ही है .... बढ़िया पोस्ट :)

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