Seema Kee Lekhanee
Tuesday, July 29, 2014
रोशनी
जाने कब अपने भीतर का
अँधियारा
तोड़ने लगता है, दीवारें
हमें पता भी नहीं चलता।
उजाला बना लेता है
चुपचाप अपनी पहचान ,
मन के अंदर
कि उसे तो बस
थोड़ी सी जगह चाहिए
अंदर आने के लिए !!
- सीमा श्रीवास्तव
(रोशनी एक छोटी सी जगह से भी आ सकती है )
2 comments:
विभा रानी श्रीवास्तव
July 31, 2014 at 2:06 PM
सच्ची अभिव्यक्ति
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Unknown
July 31, 2014 at 6:54 PM
धन्यवाद दीदी...
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सच्ची अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी...
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