Sunday, July 27, 2014

मुझे कुछ कहना है!

आकाश का यूँ बदला-बदला रंग क्यों है ? 
आदमी का यूँ बदला-बदला ढंग क्यों है ?
जज्बातों पर हर पल इतना बंध क्यों है ?
फिज़ाओं में हर पल बारूदी गंध क्यों है ?
हाथों में निवालों  के बदले  संग क्यों है ?
भूख की खातिर ज़िंदगी में जंग क्यों है ?
जो जवाबदार है इन कोहपैकर सवालों के -
उनसे मुझे कुछ कहना है !
मुझे कुछ कहना है।  
 (संग = पत्थर, कोहपैकर = भीमकाय, विशाल.)

6 comments:

  1. साहित्य जगत में नए सितारे के उद्भव का स्वागत! टेक्नोलॉजी की रफ़्तार से कलम की दस्तार कभी छोटी नहीं होती। ज़ज़्बात की ज़ुम्बिस से इंसानी रूह में हलचल पैदा करने की मुख्तलिफ कोशिशों को सलाम !

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद मनोजजी....तहेदिल से शुक्रिया...

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  3. हाथों में निवालों के बदले संग क्यों है ?
    भूख की खातिर ज़िंदगी में जंग क्यों है ?
    .... सशक्‍त भाव

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  4. इन भीमकाय सवालों का कोई जवाब नहीं...शायद यही है जिन्दगी...
    ब्लॉग जगत में स्वागत हैः)

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    1. जी ऋता जी ,... फिर भी मन सवाल उठाने से बाज नही आता..

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